विधाथी और अनुशासन essay

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन बहुत आवश्यक है। विद्यालय का अनुशासन से युक्त वातावरण बच्चों के विकास के लिए परम आवश्यक है। एक विद्यालय का निर्माण इसलिए किया गया है कि यहाँ के अनुशासन युक्त वातावरण में रहकर अपना विकास करे। सोचो यदि विद्यालय नहीं होता तो अनुशासन की कमी सभी बच्चों में होती। विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता उन्हें आलसी, कामचोर और कमज़ोर बना देती है। वे अनुशासन में न रहने के कारण अपने उद्दंड हो जाते हैं। इससे उनका विकास धीरे होता है। एक विद्यार्थी के लिए यह उचित नहीं है। अनुशासन में रहकर साधारण से साधारण छात्र भी परिश्रमी, बुद्धिमान और योग्य बन जाता है। समय का मूल्य भी उसे समझ में आता है। क्योंकि अनुशासन में रहकर वह समय पर अपने हर कार्य को करता है। जिसने अपने समय की कद्र की वह कभी परास्त नहीं होता है। प्राचीनकाल में बच्चों को विद्या ग्रहण करने के लिए घरों से मीलों दूर वनों में स्थित आश्रामों में भेजा जाता था। यहाँ के अनुशासन युक्त वातावरण में वह शिक्षा ग्रहण किया करते थे। उनके लिए कठोर नियम हुआ करते थे। गुरू की देख-रेख में वह कई वर्षों तक रहा करते थे। वहाँ रहकर वह संयासी का जीवन व्यतीत करते थे। गुरू द्वारा उन्हें कड़े अनुशासन में रखा जाता था। बिना परिश्रम के उन्हें भोजन भी नहीं दिया जाता था। तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय ऐसे ही आश्रम थे, जहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी आकर शिक्षा ग्रहण करते थे।। यहाँ से निकले विद्यार्थी विश्वविख्यात थे। चंद्रगुप्त यहीं का एक विद्यार्थी था। आज का समय बदल चुका है। विद्यार्थी अब पहले की भांति आश्रमों नहीं जाते हैं। परन्तु विद्यालयों में इस बात को ध्यान रखकर अनुशासन का वातावरण कायम किया गया है।

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