A anuched on pariksha ka antim din

 ​परीक्षा के नाम से ही अच्छे से अच्छा व्यक्ति भी काँप जाता है। परीक्षा के नाम से तो मुझे भी बहुत डर लगता है। परीक्षा से दो महीने पहले ही मैं तैयारियों में लग जाता था। घर से निकलना, टी.वी. देखना और खेल खेलना छोड़ देता था। सारा-सारा दिन पुस्तकों में सिर झुकाए रखता था। माता-पिताजी भी मेरे साथ परेशान रहते थे। पूरे वर्ष का प्रश्न था। ज़रा-सी चूक मेरा एक वर्ष खराब कर सकती थी। जब तक परीक्षा होती एक-एक दिन तनाव और चिंता से भरे होते थे। परीक्षा का आखिरी दिन सभी तनाव और चिंताओं से मुक्ति का आखिरी दिन हुआ करता था। सुबह सवेरे परीक्षा देने तक मन में थोड़ी सी चिंता व्याप्त होती थी परन्तु आखिरी दिन जानकर राहत मिल जाती थी। हम सभी परीक्षा समाप्त होने का इंतज़ार किया करते थे। जल्दी-जल्दी अंतिम प्रश्न-पत्र हल करने का प्रयास करते और परीक्षा भवन के बाहर एकत्र होना आरंभ कर देते थे। उसके बाद विभिन्न तरह के कार्यक्रम बनाते थे कि अब क्या-क्या करेंगे। कुछ कार्यक्रम तो एक दिन पहले ही बन जाते थे। एक बच्चा अपने साथ क्रिकेट खेलने का बल्ला और गेंद लेकर आता था। वहाँ से हम समीप बने किसी मैदान में चले जाते और दो समूहों में बंटकर खेल खेलना आरंभ कर देते थे। हम क्रिकेट का भरपूर आनंद उठाते थे। परीक्षा के बाद खेलने का अपना ही मज़ा हुआ करता था। खेल समाप्त होने के बाद हम सब घूमने निकल जाते। घरवालों की तरफ से पूरी छूट हुआ करती थी। बाहर ही खाते-पीते और खूब मौज़-मस्ती किया करते थे। उस दिन देर से घर लौटते और जमकर टी.वी. देखा करते थे। घर पर कोई भी नहीं रोकता था। पिताजी उस दिन खाने के लिए कुछ विशेष लाते थे। रात को चैन की नींद सोया करते थे। परीक्षा का दिन सबसे सुकून भरा दिन होता था। ऐसी प्रसन्नता मुझे कभी नहीं होती थी।

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