aaath-das mile chalnepar sare ved-bhav meet gaya- yaha lekhak kis ved-bhavki bat kar raha he

मित्र जिस बस से लेखक यात्रा कर रहा था, उसकी हालत बहुत खराब थी। उसके पुर्ज़े हिल रहे थे। उनका आपस में कोई तालमेंल नहीं था। परंतु दस मील तक उस बस में यात्रा करने पर लेखक को उस बस की आदत हो गई थी। अब उसे उन पुर्ज़ों का हिलना अजीब नहीं लग रहा था। यहाँ लेखक असमानता तथा ऊँच-नीच के भेदभाव की बात कर रहा था। परंतु अब ये भेदभाव मिट गए थे। 

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