an essay on student life

'विद्यार्थी' शब्द का जन्म विद्या से हुआ है। विद्या हर मनुष्य के लिए ऐसी अमूल्य धरोहर है, जो जीवन मार्ग में चलते हुए हर कदम में उसका साथ देती है। युधिष्ठिर के अनुसार विदेश जाने वाले का साथी विद्या ही होती है। विद्याधन किसी के द्वारा न चुराया जा सकता है और न बर्बाद किया जा सकता है। विद्या प्राप्त करने वाला 'विद्यार्थी' कहलाता है। परन्तु आदर्श विद्यार्थी वही कहलाता है, जिसका उद्देश्य शिक्षा ग्रहण करना व अत्यधिक ज्ञान प्राप्त करना होता है। 

'आदर्श विद्यार्थी' इन शब्दों का उच्चारण करते हुए हमें ऐसे व्यक्ति का स्मरण हो आता है, जिसका उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करना होता है। वह विद्या-अनुरागी, जिज्ञासु, परिश्रमी और सुशील व्यक्ति होता है। वह अपनी पाठशाला को उसी प्रकार पूजता है; जैसे- भगवान को पूजा जाता है। समय में उठकर नियमित पाठशाला जाता है। अध्यापकों द्वारा कही गई हर बात और सीख को ध्यानपूर्वक सुनता व समझता है। मन लगाकर पढ़ता है। पाठशाला से घर पहुँचकर पाठों को पुन: पढ़ता है। अपने समय को बर्बाद न करके विद्या अध्ययन में समय व्यतीत करता है। उसके लिए विद्या ग्रहण करना मजबूरी नहीं है। वह रुचि लेकर पूरी तन्मयता से पठन व पाठन करता है। 

आदर्श विद्यार्थी बनने के लिए कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है। एक आदर्श विद्यार्थी को संयमी व परिश्रमी होना अति आवश्यक है। उसके अन्दर सदाचार का होना भी ज़रूरी है। आदर्श विद्यार्थी मात्र अपनी कक्षा की पुस्तकों से संतुष्ट नहीं होता बल्कि वह अन्य पुस्तकों, पत्र और पत्रिकाओं का भी समान रुप से अध्ययन करता है। उसके लिए ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है, इसी तरह से उसके ज्ञान में वृद्धि होती है। इस तरह उसके अन्दर आत्मविश्वास और ज्ञान का भंडार भी बढ़ता जाता है। वह इस बात का भी ध्यान रखता है कि उसके अन्य सहपाठी भी उसके समान ही आचरण करें। अपने जीवन में वह नैतिक मूल्यों का विशेष ध्यान रखता है और उन्हें अपने स्वभाव में आत्मसात कर लेता है। 

एक आदर्श विद्यार्थी भी तभी शिक्षा में अपना पूरा ध्यान लगा सकता है, जब तक पूरी तरह से स्वस्थ है। किसी ने सही कहा है, ''स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।'' आदर्श विद्यार्थी का कर्तव्य और उद्देश्य शिक्षा व अनुशासन का पालन करना होना चाहिए। बुरी संगत से स्वयं को बचाना चाहिए। व्यर्थ के लड़ाई-झगड़ों से भी स्वयं को दूर रखना चाहिए। एक आदर्श विद्यार्थी स्वभाव में विनम्र व भद्र होना चाहिए। यदि वह सामाजिक सेवा के कार्यों में भाग लेता है, तो वह स्वयं के विकास को नई दिशा प्रदान करता है। क्योंकि मात्र शिक्षा लेना उसका लक्ष्य नहीं होता बल्कि अपने ज्ञान से देश व समाज की प्रगति भी उसका लक्ष्य होता है।

जीवन को सही दिशा देना ही एक आदर्श विद्यार्थी का कार्य होता है। हमारी शिक्षा हमें पैरों में खड़े रहना सिखाती है। जो विद्या दूसरों के हितों और कार्यों के लिए समर्पित हो, वही सही सच्चे अर्थों में शिक्षा कहलाती है। आदर्श विद्यार्थी को चाहिए अपनी शिक्षा का सदुपयोग करते हुए सबके हितों के लिए कार्य करे। अपने कार्यों से अपने माता-पिता और गुरू का मान बढ़ाए। यही उसके आदर्श और कर्तव्य होते हैं। आदर्श शब्द विद्यार्थी की परिभाषा बदलकर रख देता है। उसके कर्तव्य और आदर्श उसे सबसे अलग और विशिष्ट बना देते हैं। 

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