can i get akbari lota story in drama form

एक बड़ा-सा घर हैं चारों तरफ दीवार पर सुन्दर भगवानों के चित्र लगे हुए हैं। कमरे में एक पंलग और दूसरी ओर बैठने के लिए दो कुर्सियाँ है। पलंग पर लाल व पीले रंग से बनी सुन्दर चादर बिछी है। उस पर दो गोल तकीए रखे हैं। उनमें से एक तकीये में टेक लगाकर लाला झाऊलाल घर में आराम से बैठे हुए हैं। पत्नी चाय लेकर कमरे में दाखिल होती है। उनके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट है।
लालाजी : (हँसते हुए) क्या बात है? बड़ी खुश नजर आ रही हो।
पत्नी : (प्रसन्नता से) 'हाँ' आज सामने की मेरी सहेली ने नए कंगन बनाए हैं।
लालाजी : (हैरान होते हुए) इसमें तुम्हें खुशी क्यों हो रही है?
पत्नी : (प्यार से) उसके कंगन बहुत अच्छे लग रहे थे। मैंने सोचा मैं भी वैसे ही कंगन बनवाऊँगी।
लालाजी : (प्रसन्नता से) हाँ-हाँ क्यों नहीं बनवा लो।
पत्नी : (हर्षपूर्वक) तो निकालों ढाई सौ रुपए।
लालाजी : (खाँसते हुए) ढाई सौ रुपए। तुम जानती भी हो कितने होते हैं।
पत्नी : (क्रोध में) हाँ अच्छी तरह से कितने होते हैं। देते हो तो दो वरना कोई बात नहीं मैं अपने भाई से मंगवा लूँगी।
लालाजी : (तिलमिलाते हुए) अरे तुम तो नाराज हो गई। मैंने मना कब किया है।........................
में आपको 'अकबरी लोटा' का नाटक रुप भेज रही हूँ परन्तु यह पुरा नहीं है। कहानी को पढ़कर इसे आप स्वयं पुरा करो, इससे आपका अच्छा अभ्यास होगा और आपको यह लिखना भी आ जाएगा।

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