essay on charitra ke vina siksha adhuri

'शिक्षा' शब्द का अर्थ है अध्ययन तथा ज्ञान ग्रहण करना। वर्तमान युग में शिक्षण के लिए ज्ञान, विद्या, एजूकेशन आदि अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग होता है। शिक्षा चेतन या अचेतन रूप से मनुष्य की रूचियों समताओं, योग्यताओं और सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, आवश्यकता के अनुसार स्वतंत्रता देकर उसका सर्वागींण विकास करती है। शिक्षा हमारे सोचने, रहने और जीने के ढंग को बदलने में सहायता करती है। यह विद्या हमें विद्यालय से प्राप्त होती है। विद्यालय का इसमें मुख्य स्थान है। विद्यालय की शिक्षा बच्चे के लिए बहुत आवश्यक है। यही से उसकी आरंभिक शिक्षा होती है। अतः इसका बहुत महत्व होता है। इनके द्वारा ही बच्चे को बुनियादी शिक्षा दी जाती है। इससे ही उसके भविष्य की नींव डलती है। प्राथमिक शिक्षा का स्तर जितना अच्छा होगा बच्चे की बौद्धिक क्षमता का उतना ही विकास होगा। उसका चरित्र निर्माण भी विद्यालय की छत्र-छाया में होता है। बच्चा अपने माता-पिता की छांव से निकलकर विद्यालय के वातावरण में आता है। अतः यहाँ प्राप्त शिक्षा उसे ज्ञान को पाने का पथ निर्धारित करती है। अतः हम कह सकते हैं कि विद्यालय में दी गई शिक्षा रीढ़ के समान है। जो शिक्षा बच्चे का चरित्र निर्माण न कर सके, उसका कोई मूल्य नहीं है। शिक्षा जीविका का साधन मात्र नहीं है। शिक्षा उसके चरित्र को सजाती-संवारती है। उसे एक अच्छा मनुष्य बनाती है। एक उज्जवल चरित्र का मनुष्य समाज, देश तथा विश्व को सद्मार्ग में ले जा सकता है। जिस मनुष्य का चरित्र ही नहीं है, उस मनुष्य से समाज, देश तथा विश्व का कल्याण नहीं हो सकता है। अतः जो शिक्षा चरित्र निर्माण न कर सके, वह व्यर्थ है।

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