essay on earthquake in hindi
मनुष्य ने अपनी उत्पत्ति के साथ से ही प्रकृति का दोहन किया है परन्तु आज उसके दोहन का स्तर चरम पर है। पूरे विश्व की आबादी ७ अरब पहुँच गई है। इतनी सारी आबादी का भरण - पोषण करने के लिए हमप्रकृति पर ही आश्रित है। प्रकृति मनुष्य के लिए वरदानदायनी थी परन्तुअब वीभत्स रूप धारण कर चुकी है। आज वह अपनी नाराज़गी को विभिन्नरूपों में दिखा रही है। बाढ़ एवं भूकंप इसके दो प्रलयकारी रूप है। जब अत्यधिक वर्षा के कारण नदी का जल स्तर अपनी सीमाओं से निकलकर गाँवों और अन्य स्थानों में पहुँचकरसब नाश कर दे , उसे बाढ़ कहते हैं। बाढ़ का खतरा वर्षाकाल में अधिक बना रहता है। पानी की शक्ति का आंकलन लगना सरल नहीं है। इससे निपटने के लिए मनुष्य के पास कोई कारगर उपाय भी नहीं है। जब नदी अपने उफान पर आती है , तो अच्छे - अच्छे धराशाई हो जाते हैं। सूत्रों के अनुसार हर साल विश्वभर में बाढ़ से हज़ारों - लाखों जानमाल की हानि होती है। इसके आगे मनुष्य स्वयं को बेबस पाता है। परन्तु बाढ़ के समय नदी का बहाव धीरे - धीरे बढ़ता है। समय रहते लोगों को सुरक्षित स्थानों में ले जाया जा सकता है। परन्तु भूकंप तो उससे भी प्रयलकारी है। जब पृथ्वी के गर्भ में स्थित प्लेटें आपस में टकराती हैं या उनके मध्य घर्षण होता है , तो भूकंप आता है। भूकंप से होने वाला विनाश बहुत वीभत्स होता है। बड़ी - बड़ी इमारतें ताश के पत्ते के समान ढह जातीहैं। जमीन में होने वाली तीव्र हलचल से जमीन में जगह - जगह दरारें आ जाती हैं। भूकंप से होने वाला विनाश बाढ़ से भी बहुत अधिक है। कई बार तो दरारों के अंदर गाँव के गाँव समा सकते हैं। लोगों को स्वयं को बचाने का अवसर ही नहीं मिलता है और वे दब कर मर जाते हैं। इससे होने वाली बाढ़ से कई अधिक होती है। भूकंप नापी यंत्र से दो या तीन मिनट पहले भूकंप का पता लगाया जा सकता है परन्तु यह समय मनुष्य की किसी भी प्रकार से सहायता नहीं कर पाता है। प्रकृति के इन दोनों प्रलकारी रूप के सामने मनुष्य बेबस हो जाता है।