essay on sangati ka prabhav

संगति मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। संगति का अर्थ होता है साथ। मनुष्य पर साथ का विशेष प्रभाव देखा जाता है। यदि गौर किया जाए, तो संगति के प्रभाव को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता है। संगति दो प्रकार की होती है- सत्संगति और कुसंगति। मनुष्य को यह तय करना होता है कि वह अपने जीवन में लोगों की किस प्रकार की संगति करता है। संगति मनुष्य के जीवन को चमत्कारिक ढंग से प्रभावित करती है। यदि मनुष्य विद्वान की संगति करता है, तो वह विद्वान न बने परन्तु मूर्ख भी नहीं रहता। विद्वानों के साथ उठने-बैठने के कारण उसे समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होता है। अच्छी संगति उसके व्यक्तित्तव को निखारती है। उसे मार्ग दिखाती है। यदि मित्र अच्छा है, तो उसका जीवन सफल हो जाता है। इसके विपरीत मनुष्य यदि कुसंगति वाले लोगों के साथ उठता बैठता है, तो वह स्वयं के लिए मुसीबतों का मार्ग खोल देता है। एक चोर के संगत में उठने-बैठने से मन में भी उसी प्रकार के कुविचार आने लगते हैं। यदि वह स्वयं को बचा भी लेता है, तो लोग उसके विषय में गलत धारणा बना लेते हैं। अन्य लोग उनसे कतराने लगते हैं। समाज में उसकी प्रतिष्ठा पर दाग लग जाता है। लोग उसका भरोसा नहीं करते हैं। इसलिए संगति का मनुष्य के जीवन पर विशेष प्रभाव देखा गया है। इसे नकारना हमारे लिए संभव नहीं है। इसलिए तो कहा गया है जैसे जिसकी संगति होती है, वैसा उसका रुप होता है।

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