essay on van(jungle)aur hamara paryavaran

नमस्कार मित्र!
जब से मनुष्य के कदम इस पृथ्वी पर पड़े हैं। उसने अपने रहने के लिए पृथ्वी पर वनों को काटना शुरु कर दिया है। उसने अपने आवास स्थान के लिए वनों का नाश ही किया है। अब एक मामूली झोंपड़ी में आराम नहीं मिला तो उसने पक्के घरों, बिल्डिंगों का निर्माण किया। मनुष्य की बढ़ती आबादी ने नदियों का ह्रास करना आरंभ कर दिया।
ये वन ही हैं, जो हमारे पर्यावरण को बचाए हुए हैं। परन्तु मनुष्य द्वारा इनके अत्यधिक दोहन से जलीय, थलीय एवं वायुमंडलीय प्रदूषण बढ़ गया है। वनों के कटाव से भूमि के कटाव की समस्या और रेगिस्तान के प्रसार की समस्या सामने आई है। वनों के अत्यधिक कटाव ने जंगली जानवरों के अस्तित्व को संकट में डाला है।
आज पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के कारण नित नई बीमारियाँ अपना मुँह फाड़े मनुष्य को काल का ग्रास बनाने के लिए तैयार हैं। एक बीमारी से हम निजात पाते नहीं कि नई बीमारी आ खड़ी होती है। दूसरी ओर इन प्राकृतिक आपदाओं ने कदम दर कदम नित नई समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं।
बढ़ते प्रदूषण ने पर्यावरण में मौसम सम्बन्धी परेशानियाँ खड़ी कर दी हैं। पेड़ों की कमी का परिणाम यह हो रहा है कि वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। पृथ्वी का तापमान अधिक हो गया है। मौसम और ऋतुओं पर भी असर देखने को मिल रहा है। गर्मी के मौसम में अत्यधिक गर्मी और ठंडी में ठंड अधिक पड़ने लगी है। किसी मौसम में अत्यधिक बरसात से बाढ़ की स्थिति बन जाती है और हज़ारों जानों-माल का नुकसान होता है। बारिश न होने की वजह से गाँव के गाँव सूखे की चपेट में आ जाते हैं। इससे हमारी प्राकृतिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो रही है।
हमें चाहिए कि हम इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी आदतों को सुधारें व अपनी व्यर्थ की प्रगति पर लगाम लगाएँ। हर मनुष्य प्रगति करना चाहता है पर वो प्रगति किस काम की जो आगे चलकर हमारे लिए ही मौत का सामान तैयार करे। यह हमारे हित में तो है ही नहीं अपितु हमारे साथ रह रहे अन्य जीव-जंतु के हित में भी नहीं है। हमारा यह नैतिक कर्त्तव्य बनता है कि हम कर्त्तव्यों का निर्वाह करें। अपने इस जीवनदायी वनों का व्यर्थ में दोहन न करें, उसे एक सहचरी की तरह प्यार व सम्मान दें। अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करते हुए अत्यधिक पेड़ लगाएँ। वनों के कटाव को रोकें और वातावरण में प्रदूषण को न फैलाएँ । वनों के विनाश को रोकने के लिए उचित कानून बनाएँ। इस पृथ्वी को दुबारा स्वर्ग की तरह सुंदर बना पाएँगे।
 
आशा करती हूँ कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!
 
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