explain tulsidas poem ram laxman parashuram sanvad
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Hi,
हम आपको इस तरह पूरे काव्यांश की व्याख्या लिखकर नहीं दे सकते हैं। हम आपको पहले हिस्से की व्याख्या दे रहे हैं-
नाथ संभुधनु ------------------------------------------------------------------------------------------------बिदित संसार।।
शिव धनुष के टूटे जाने पर परशुराम जी क्रोध में भरे हुए स्वयंवर सभा में पहुँचे। उनको क्रोध में जानकर श्री राम को शांत करने के लिए बोले, हे प्रभु शिव धनुष को जिसने भी तोड़ा है वह आपका कोई एक दास ही होगा। यदि कोई आज्ञा है तो आप मुझे क्यों नहीं कहते। श्री राम की इस प्रकार की बातों ने परशुराम के क्रोध में घी के समान काम किया। यह सुनकर परशुराम जी क्रोधित होकर बोले-सेवक वह कहलाता है जो सेवा का काम करता है। मेरे प्रिय आराध्य का धनुष तोड़ने वाले ने शत्रु का काम किया है। इसलिए उससे लड़ाई करनी चाहिए। परशुराम जी श्री राम को सम्बोन्धित करके कहते हैं- हे राम सुनो जिसने मेरे आराध्यदेव शिव का यह धनुष तोड़ा है वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा शत्रु है। मुनिवर आगे क्रोध में कहते हैं, जिसने इस धनुष को तोड़ा है वह इस सभा में बैठे हुए व्यक्तियों से अलग हो जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराए और परशुराम जी का अपमान करते हुए बोले हे गोसाई हमने अपने बालपन में ऐसी बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ डाली हैं परन्तु आजतक किसी ने हम पर इतना क्रोध नहीं किया। आपकी इस धनुष पर किस कारण से ममता है? लक्ष्मण जी के इस तरह के वचन सुनकर भृगुवंश की ध्वजा के समान परशुरामजी क्रोधित होकर बोले अरे राजकुमार। काल के वश में होने के कारण तुझे बोलने का कुछ भी होश नहीं है। इस सारे संसार में विख्यात यह शिवाजी का धनुष तुझे साधारण धनुही के समान नजर आता है।
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