give 5 more kabir ki sakhi and explain it ????

1. माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे। 

एक दिन ऐसा आएगा,मैं रोंदुगी तोहे।। 

कबीर कहते हैं कि माटी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे बर्तन बनाने के लिए रोंदता है। परन्तु तू यह सत्य भूल जाता है कि एक दिन तू मुझ में ही मिल जाएगी। तब मैं तुझे इसी तरह से रोंदूगी। अर्थात हर मनुष्य को मरने के पश्चात मिट्टी में ही मिलना होता है। 

2. चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय। 

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।। 

कबीर कहते हैं कि वह चक्की को देखकर दुखी होकर रोने लगते हैं। क्योंकि मनुष्य चक्की के समान मोह-माया के बंधनों में पीस जाता है। इस तरह से पिसी हुआ मनुष्य कभी सदगति को प्राप्त नहीं होता और दुखी होता हुआ मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। 

3. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। 

जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय।। 

कबीर कहते हैं कि मैं संसार के लोगों में बुराई खोजने निकला था। परन्तु जब मैंने अपने अंदर झाँकना आरंभ किया, तो मुझे इस संसार में अपने से बुरा और कोई नहीं मिला। अर्थात् दूसरों की बुराई करने से पहले स्वयं के ह्दय में देखना चाहिए हमें पता चल जाएगा कि हम स्वयं भी बुराई से सने पड़े हैं। 

4. माया मरी ना मन मरा, मर मर गये शरीर, 

आशा त्रिश्ना ना मरी, कह गये दास कबीर। 

कबीर कहते हैं कि कवि का मन और माया कभी नहीं मरते हैं। अर्थात् मन उसे विषय वासनाओं में भटकता है और माया उसे भ्रमित करती हैं। इन दोनों के नियंत्रण में मनुष्य युगों से बंधा रहा है। शरीर मर जाते हैं परन्तु मनुष्य की त्रिशंना कभी नहीं मरती है। 

5. दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे ना कोये 

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होये। 

कबीर के अनुसार मनुष्य जब दुखी होते हैं, तो भगवान को याद करते हैं। वह उसे याद करके रोते हैं। परन्तु जैसे ही दुख समाप्त हो जाता है और सुख आ जाता है, तो वह उसी ईश्वर को याद करना भूल जाते हैं। कबीर कहते हैं, जो मनुष्य सुख में ही प्रभू को याद करना आरंभ कर दें, तो उन्हें कभी दुख सता नहीं सकता है।

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