give a essay on tayuharo ka mahatv

'भारत' विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का देश है। इस कारण यहाँ विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। त्योहार को मनाने के पीछे एक महत्वपूर्ण प्रेरणा छिपी रहती है, जो हमें इन त्योहार को मनाने के लिए प्रेरित करती है। ऐसे ही त्योहार में से एक 'रक्षाबंधन' है। भारतीय संस्कृति में इस त्योहार का अपना ही विशेष महत्व है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन 'रक्षाबंधन' मनाया जाता है। इस दिन प्रत्येक बहन अपने भाई को राखी (रक्षासूत्र) बाँधती है तथा अपने भाई की लंबी आयु और मंगल की कामना करती है। भाईयों की कलाई में बाँधे जाने वाले सूत्र के कारण ही यह त्योहार 'रक्षाबंधन' के नाम से जाना जाता है।

राखी से कुछ दिनों पहले बाज़ार का नज़ारा ही अलग होता है। चारों तरफ दुकानों में विभिन्न तरह की सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगी राखियाँ देखने को मिलती हैं। बहनें अपनी पंसद अनुसार भाई के लिए राखियाँ खरीदती हैं। भाई यदि शहर से बाहर या विदेश में रहता है, तो बहनें पोस्ट के माध्यम से भाई को अपनी राखियाँ कुछ दिनों पहले ही भिजवा देती हैं। भाई प्रात:काल नहा-धोकर अपनी बहन का इंतजार करते हैं। बहनें थाली में राखी, अक्षत, रोली और दीया आदि सजाकर रखती हैं। सर्वप्रथम वे अपने भाईयों की आरती उतारती हैं और उन्हें राखी बाँधती है। विवाहिता बहनें मुख्य रूप से इस दिन भाई के घर उसे राखी बाँधने आती हैं। भाई अपनी बहनों को यथाशक्ति अनुसार उपहार या रूपए देते हैं। भाई अपनी बहन को सारी उम्र उसकी रक्षा का भी वचन देता है।

इस त्योहार को मनाने के पीछे ऐतिहासिक कारण है। इस दिन चित्तौड़ की रानी 'कर्मवती' ने अपनी रक्षा करने के लिए मुगल सम्राट 'हुमायूँ' को रक्षासूत्र भेजा था। रानी का रक्षासूत्र देखकर सम्राट तुरंत उसकी रक्षा के लिए निकल पड़े। तभी से यह रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाने लगा। प्राचीनकाल से ही हिन्दू धर्म में इस दिन ब्राह्मणों के द्वारा अपने यजमानों को रक्षासूत्र बाँधा जाता रहा है। वे अपने यजमानों को सूत्र बाँधते हुए उनके मंगल की कामना करते हैं।

यह त्योहार भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक है। परन्तु आज इस त्योहार में बहनों और भाईयों में प्रेम की भावना प्राय: गायब होती नज़र आ रही हैं। पहले हमें चाहिए कि इस त्योहार को पूरे श्रद्धा और प्रेम से मनाएँ। भाई और बहन के इस पावन पर्व में प्रेम के स्थान पर अन्य किसी दुर्भावना का स्थान नहीं हो चाहिए तभी इस त्योहार के महत्व को समझा जा सकता है।

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Hamare jeevan mein tyohaaro ka bada mahatva hai. Hamare tyohaar keval manoranjan ke saadhan hi nahi hain kintu unke peechhe sanskritik,dharmik tatha rashtriya bhavanaein chhipi rehti hain. Hamaare tyohaar praantiyata, sampradayikta, jaatiyata ke bandhan se mukt hote hain. Rashtra ke sabhi nagarik unhe apna maante hain aur dhoomdhaam se manaate hain. Ye tyohaar hamaari rashtriya ekta kaa pratik hain. Ganatantra divas, tilak jayanti aur gandhi jayanti jaise tyohaar saare bharat mein manaaye jaate hain. Inhe hindu, musalman, parsi, isaai sabhi apna maante hain. doordarshan aur aakaashvaani par in tyohaaron se sambandhit vishesh karyakram pesh kiye jaate hain.Sabhi praanton ke sabhi vargo dvaaraa en dino ullas prakat kiya jaata hai. saare bhedbhaav mit jaaate hain. saara bharat rashtriya ekta aur prem ke rang mein doob jaata hai. Sachmuch tyohaar rashtriyata ki bhavana ke poshak hote hain.

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