hey...wat do we call yamak and aatishayokit alankar in english..plz help me....i have ma board exam and i need these answer as soon as possible!!!..tankss a lot!!
Hi,
देखो मित्र किसी भी भाषा को समझने के लिए आपको उसे जानना जरूरी है। उसे समझने के लिए दूसरी भाषा का सहारा लेना सही नहीं है। जब आप हिन्दी के अंलकारों को हिन्दी में नहीं समझ पा रहे हो तो अंग्रेजी भाषा में लिखने पर कैसे समझ पाओगे। इस तरह तो हिन्दी भाषा आपके लिए हमेशा कठिन ही रहेगी और आप इसे नहीं समझ पाओगे। यह हो सकता है की आपको इनको समझने में परेशानी हो रही हो परन्तु हम यहाँ आपकी परेशानियों का निवारण करने के लिए ही हैं। हमारा उद्देश्य है, हिन्दी में आपको आने वाली कठिनाइयों को दूर करना। अत: हमने आपकी सुविधा के लिए इन दोनों अंलकारों को बहुत सरल भाषा में व विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयास किया है। आपके थोड़े से प्रयास व अभ्यास से यह भी आपको समझ में आ जाएंगें। बस एक अच्छी कोशिश करने की आवश्यकता है।
(1) यमक अलंकार- यमक का अर्थ ले तो वह है 'जोड़ा'। अब इस आधार पर स्पष्ट हो जाता है की जब एक शब्द दो बार या उससे अधिक बार आए परन्तु हर बार उसका अर्थ अलग-अलग हो तो वह यमक अंलकार कहलाता है, देखो कैसे-
कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय,
या खाये बौराए जग, वा पाए बौराए।
देखो अब इन पंक्तियों पर ध्यान दो यहाँ 'कनक' शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। यदि हम कनक शब्द के अर्थ देखें तो एक इसका अर्थ 'सोना' (सोना धातु, gold) होता है और दूसरा 'धतूरा' (नशा करने वाला पदार्थ) भी होता है।
नीचे पंक्ति का अर्थ हुआ की धतूरा के सेवन (खाने या लेने से) करने से मनुष्य नशे के कारण पागल हो जाता है और दूसरा का अर्थ है सोना (gold) यह जिसको भी मिल जाए वह खुशी के कारण पागल हो जाता है की मुझे सोना मिल गया।
(2) अतिश्योक्ति अलंकार- अतिश्योक्ति का संधि-विच्छेद करें तो यह होगा अतिशय (बहुत/ज्यादा) + उक्ति (किसी की कही कोई बात/वचन/कथन) अर्थात किसी बात की बहुत तारीफ़ करना। अत: हम इस आधार पर लेगें, अतिश्योक्ति अलंकार में बढ़-चढ़कर किसी की तारीफ़ की जाती है, तारीफ़ करने वाला व्यक्ति इतनी तारीफ़ कर देता है की वह लोक कल्पना की सारी सीमाएं पार कर जाता है, देखो कैसे-
हनुमान की पूंछ में, लगन न पाई आग,
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग
इन दोनों पंक्तियों में तुलसीदासजी ने कहा है की हनुमान जी की पूंछ पर आग लगाई भी नहीं थी की क्षणभर में सारी लंका जल गई।
अब देखो अगर हम सोचे तो देखेंगे की ऐसा नहीं हो सकता की पूंछ में आग पूरी लगाई भी नहीं और पहले ही लंका जल गई। यहाँ तुलसीदासजी ने हनुमान जी की बढ़-चढ़कर तारीफ़ की है। अत: यहाँ अतिश्योक्ति अंलकार है।
एक और उदाहरण देखो
पड़ी अचानक नदी अपार¸ घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार¸ तब तक चेतक था उस पार।
राणा ने सोचा इस पार¸ तब तक चेतक था उस पार।
यह भी ऊपर वाली पंक्ति के समान है, राणा अभी यही सोच रहे थे की नदी के पार कैसे जाया जाए, तब तक चेतक ने नदी पार भी कर दी। जो की संभव नहीं है। घोड़े को नदी पार करने में कम से कम आधा या एक घंटा या जितना भी समय लगा हो पर लगा होगा। राणा सोच रहे थे और चेतक ने नदी भी पार कर दी यह बात हज़म नहीं होती। अत: हम कह सकते हैं की यह अतिशोक्ति अंलकार है।
आशा करती हूँ कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।