Hi ma'am ..... can you please explain me this para ?
page no.65 , lesson = dharm ki aad ... 2nd para ...
" aja dene , shank bajane ............. aazad na chod sakegi "
plz mam !!!
नमस्कार मित्र,
इस भाग का अर्थ इस प्रकार है। लेखक के अनुसार अजाँ देना, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज़ पढ़ना धर्म नहीं माना जा सकता है। ये सारी वे विधियाँ हैं, जिससे मनुष्य ने धर्म का नाम दिया है परन्तु ये धर्म नहीं है। धर्म तो शुद्धाचरण और सदाचार है अर्थात जो व्यक्ति दूसरों का बूरा नहीं सोचता, बूरा नहीं कहता, किसी का बूरा नहीं करता, झूठ नहीं बोलता, अपने स्वार्थों के लिए दूसरों का गला नहीं काटता, सदा सच बोलता है, ये सब बातें शुद्ध आचरण और सदाचार के अंदर आती हैं। लेखक के अनुसार लोग सारा-सारा दिन नमाज़ पढ़ते हैं, पूजा करते हैं परन्तु उनके किए गए काम बुरे हैं, तो वह इस बात को जान लें कि भगवान को पूजा या नमाज़ से प्रसन्न कर लिया जाए, तो यह सच नहीं है। ऐसा धर्म आने वाले समय में मिट जाएगा अर्थात लोग ऐसे धर्म से दूर रहना ही पंसद करेगें। पूजा पाठ करने वाले व्यक्ति को उसकी पूजा के आधार पर अच्छा नहीं मानेंगे बल्कि उसके भलाई के कार्यों और सद व्यवहार से ही अच्छा माना जाएगा और इन्हीं से उसकी सच्चाई की परीक्षा होगी। लेखक आगे कहते हैं कि हमें बुरी बातें और बुरे कार्यों को छोड़ना पड़ेगा। इनको छोड़ने से ही देश का हित होगा और यदि हम यह सोचते हैं कि इन सभी बातों को करते रहेंगे, तो कोई भी पूजा पाठ की विधि ऐसी नहीं होगी जो हमें बचा सकेगी। अर्थात हमें अपने बुरे कामों का भुगतान यहीं करना पड़ेगा फिर हमें कोई पूजा लोगों के गुस्से से नहीं बचा सकेगी और नहीं हमें ऐसी स्वतंत्रता मिलेगी कि हम लोगों पर जुल्म करते जाएँ और पूजा का करके बचते जाएँ।