Hindi Essay on AArakshan- Samasya ya Samaadhan?

नमस्कार मित्र!
आज़ादी प्राप्त करने के पश्चात भारत सरकार की ओर से कुछ जातियों को प्रगति के अवसर देने के लिए दी गई एक प्रकार की छुट है जिसमें उन्हें सरकारी नौकरियों, विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, संस्थाओं आदि में कुछ छूट प्राप्त होगीं या उनके लिए सीटें आरक्षित होगीं।
आरक्षण एक अच्छा अवसर था, देश की अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को प्रगति देने का। उस समय के दिग्गज नेताओं की यही धारणा थी कि पाँच साल बाद इसको समाप्त कर दिया जाएगा। तब उद्देश्य था समाज में समानता का भाव पैदा करना। लेकिन धीरे-धीरे राजनीति में भ्रष्टाचार फैलने लगा। अब राजनीति देश के विकास के स्थान पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए की जाने लगी। नेताओं को इन्हीं जातियों में अपनी जीत नज़र आने लगी। उन्होंने सबके अंदर इस तरह के बीज उत्पन्न कर दिये कि समाज मैं बटवारे की स्थिति बन गई और आरक्षण को पूरे 50 वर्ष हो गए हैं। आज के युग में यह समाधान के आधार पर समस्या बनकर उभर रहा है। देश में समानता का भाव बस ऊपर से देखने के लिए निहित है। इसके बने रहने से सामान्य लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है। वह आरक्षण के अंदर नहीं आते है तो उन्हें कई अवसरों से वंचित होना पड़ रहा है। राजनीतिक दल इसका प्रयोग अपनी सरकार को बनाए रखने के लिए कर रहे हैं। इसकी जड़ें इतनी घर कर गईं हैं कि इन्हें उखाड़ फेंकना असंभव है। कई ऐसी जातियाँ है जो आज प्रगति पा चुकी है परन्तु आज भी वह इसका लाभ ले रहे हैं, जो कि सही नहीं है। यह ऐसा समाधान है, जो समस्या का रूप धारण कर रहा है।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!
 

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