मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं. मुकताहल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत ना जाहिं..

इसका अर्थ बताओ

नमस्कार मित्र!
 
मानसरोवर के पवित्र जल में हंस क्रीड़ा कर रहे हैं। वे वहाँ मोती चुग रहे हैं। वहाँ उनको इतना आनंद आ रहा है कि कहीं ओर जाने की इच्छा नहीं है।
भावार्थ यह है कि ह्दय रूपी मानसरोवर में ईश्वर के प्रेम रूपी जल में साधक आनंद ले रहे हैं अर्थात जबसे उनका ईश्वर से साक्षात्कार हुआ है तबसे वह ईश्वर के रूपी जल में डूब गए हैं। वे वहां पर सभी बंधनों से मुक्त हो गए हैं। अर्थात सभी मोह-माया के बंधन टूट गए हैं और वह मुक्त हो गए (मुक्ता का अर्थ मुक्ती से है) हैं। अब इस स्थान से अन्य कहीं जाने की साधकों की इच्छा नहीं होती है।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

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