kaba firi kashi bhaya ramhi bhaya rahim
mot chun maida bhaya baithi kabira gim
Some one give the prasang n vyakhya of this dohe
प्रसंग- प्रस्तुत साखी कबीरदास जी द्वारा रचित 'साखियाँ' से लिया गया है। इसमें कबीर जी ने ईश्वर के महत्व को समझाने का प्रयास किया है।
व्याख्या- कबीर कहते हैं साधना की अवस्था में काबा काशी और राम रहीम के समान हो जाते हैं। जिस प्रकार गेहूँ को पीसने में वह आटा और बारीक पीसने में मैदा हो जाता है। परन्तु आते वह दोनों खाने के काम ही हैं। अर्थात दोनों ही एक ईश्वर की संताने हैं बस नाम अलग - अलग हैं।
व्याख्या- कबीर कहते हैं साधना की अवस्था में काबा काशी और राम रहीम के समान हो जाते हैं। जिस प्रकार गेहूँ को पीसने में वह आटा और बारीक पीसने में मैदा हो जाता है। परन्तु आते वह दोनों खाने के काम ही हैं। अर्थात दोनों ही एक ईश्वर की संताने हैं बस नाम अलग - अलग हैं।