Madam, the study material of AKBARI LOTA is not display. Please help. i need the story as NATYA ROOP

मित्र हमने केवल पद्य भाग में अध्ययन सामग्री दी हुई है। गद्य भाग में कुछ नहीं दिया है यही कारण है कि आपको वहाँ कुछ नहीं दिखाई दे रहा है।

पूरे अकबरी लोटा पाठ का नाटक रूपांतर हम नहीं दे सकते हैं। आपको इसकी शुरूआत करके दे रहे हैं, आप इसे आगे स्वयं लिखिए।
लाला झाऊलाल बैठे हुए हैं। कमरे में एक तख्त हैं उसमें बहुत सुंदर जयपुरी चादर बिछी हुई है। हुक्के की आग सुलग रही है। आँखें बंद किए हुए लाला झाऊलाला हुक्के का आंनद उठा रहे हैं। तभी उनकी पत्नी प्रवेश करती है।
पत्नी- आप! इस वक्त घर पर?
लाला झाऊलाला- (मज़ाक के अंदाज में) क्यों हमारा घर पर रहना आपको अच्छा नहीं लगता है?
पत्नी- (गलती का ध्यान आते ही) नहीं ऐसी बात नहीं है।
लाला झाऊलाल- क्या बात है बड़ी परेशान लग रही हो?
पत्नी- ऐसे ही।
झाऊलाल- नहीं बताओ तो सही क्या बात है?
पत्नी- (कुछ सोचते हुए)- अच्छा तो फिर मुझे ढाई सौ रूपये दे दीजिए।
झाऊलाल- (हैरान होते हुए) क्या ढाई सौ रूपये? जानती हो कितने होते हैं?
पत्नी-(क्रोध में) हाँ! हाँ! जानती हूँ कितने होते हैं? देने है तो दो नहीं तो भाई से माँग लाऊँगी।
झाऊलाल- (संयम रखते हुए)- तुम गलत ले बैठी। अरे भाई से क्या माँगने जाओगी। अवश्य दे दूँगा।

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