majhab nahi sikhata aapus me ber rakhna
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धर्म मनुष्य की पहचान है। भारत में चार प्रमुख धर्म माने गए हैं- हिन्दी, मुस्लिम, सिख और ईसाई। सारे धर्म भारत में प्रेम और भाईचारे से रहते हैं। परन्तु एक समय था, जब भारत में धर्म के नाम पर भेदभाव निहित था। लोग दूसरे धर्मों को हीनभावना से देखते थे। मन में बैर का भाव विद्यमान था। बस मौका ढूँढा जाता था, आपस में लड़ने का। धर्म मनुष्य को सदाचार, प्रेम, मानवता, भाईचारा, ईमानदारी, अहिंसा, सदाचार का जीवन जीने के लिए कहता है। किसी भी धर्मग्रंथ को उठाकर पढ़ लीजिए कहीं भी यह नहीं लिखा है कि आमुक धर्म का व्यक्ति निंदा, बैर, भेदभाव करने योग्य है। हर धर्म में यही कहा गया है कि मनुष्य को जीवन में सबसे प्रेम से रहना चाहिए, दूसरों की सेवा करना उसका परम कर्तव्य है और यही सही मायने में धर्म है। महाभारत में धर्म-अधर्म की बात कही गई है। परन्तु उसमें अलग-अलग धर्मों के लोग सम्मिलित नहीं थे। ये तो एक ही परिवार के लोगों के बीच अपने अधिकार को लेकर हुआ युद्ध था। कृष्ण भगवान ने पांडवों के द्वारा लड़े गए युद्ध को धर्म कहा गया है। ईसा ने और गुरू नानक साहिब ने भी कहीं धर्म का उल्लेख नहीं किया है, बस उन्होंने बुराई का साथ देने और बुरा करने वालों को सीख देने का प्रयास किया है। उन्होंने सबको यही कहा कि सदा सत्य बोले, सबके साथ प्रेम से रहो, गरीबों की मदद करो, दीनों के दुख हरो और ईश्वर भक्ति करो, सबको अपना भाई समझों क्योंकि सब ईश्वर की संतान हैं।। अर्थात यदि हम इस बात पर ध्यान दें, तो सबका एक ही निचोड़ है कि हम सब एक हैं और सब उस ईश्वर की संतान है। यह कथन इस बात की सत्यता पर सही प्रकाश डालता है कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।