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विद्यालय में अध्यापक के साथ ही विद्यार्थी का सबसे पहला परिचय होता है। विद्यार्थी अपने अध्यापक से प्रेरित होकर उनके जैसा बनने का प्रयास करता है। मैं भी विद्यालय में पढ़ता हूँ। यूँ तो विद्यालय के सभी अध्यापकों के प्रति मेरे मन में आदर व सम्मान हैं और वे सभी मेरे प्रिय भी हैं लेकिन हमारे हिन्दी के अध्यापक अपनी विशिष्टताओं के कारण मुझे सबसे अधिक प्रिय हैं। मेरे प्रिय अध्यापक न केवल आदर्श शिक्षक हैं अपितु एक सच्चे देशभक्त, उच्च कोटी के समाज सुधारक तथा सच्चरित्रता की साक्षात मूर्ति भी हैं। उनका उदार चरित्र सबको अपनी ओर खींचता है। उनके गुणों से सारा विद्यालय सुगंधित रहता है। उनके आचार-विचार से हमको प्रेरणा मिलती है। सब उन्हें गुरुजी कहते हैं।

मेरे प्रिय गुरुजी को अपने विषय का भरपूर ज्ञान है। उनके पढ़ाने का ढंग बिलकुल निराला है। बीच-बीच में उदाहरणार्थ ऐसी-ऐसी कहानियाँ सुनाते हैं कि विषय को समझना बिलकुल आसान और मनोरंजक हो जाता है। वे हमें बताते हैं कि "आचार: परमो धर्म:" तथा इसका पालन वे स्वयं भी करते हैं। कक्षा में उनका धैर्य देखते ही बनता है। क्रोध नाम का शब्द उनके चरित्र में है ही नहीं। वे सभी छात्रों को एक समान प्रेम करते हैं। छात्रों को अगर विषय नहीं समझ में आया है, तो उसको बार-बार धैर्यपूर्वक समझाते हैं।

गुरुजी सदैव समय का पालन करने के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। घंटी बजते ही वे कक्षा में उपस्थित हो जाते हैं। उनका मानना है कि समय की गति पहचानने वाला अपने भाग्य के द्वार स्वयं खोल देता है। कभी-कभी छात्र आपस में लड़ाई करते हैं, तो उनको वह स्नेहपूर्वक समझाते हैं। वे कहते हैं झगड़े में समय व शक्ति नष्ट करना मूर्खता है। उनके अनुसार समय का सदुपयोग करना सीखना चाहिए। समय बीत जाने पर मनुष्य को पछताना ही पड़ता है। विद्यार्थियों के लिए उचित शिक्षा उचित समय में प्राप्त करना ईश्वर की पूजा के समान है।

गुरुजी स्वयं भी समय का पूर्णरूप से सदुपयोग करते हैं। अपने खाली समय में कोई समाचार पत्र, कोई पुस्तक पढ़ते रहते हैं या कुछ लिखते रहते हैं। हर छात्र की व्यक्तिगत समस्याओं को भी सुलझाने में व्यस्त रहते हैं। विद्यार्थियों के दुख को वे अपना दुख समझते हैं। किसी भी छात्र का यदि कक्षा में ध्यान नहीं है, तो वे तुरन्त समझ जाते हैं कि वह किसी प्रकार के मानसिक तनाव से गुज़र रहा है। अपने विद्यार्थियों के चेहरे से वे उनके मन की भावनाओं को जान लेते हैं। गुरुजी विभिन्न कलाओं में निपुण हैं। वे एक कुशल चित्रकार भी हैं। पाठ से सम्बंधित चित्र बड़ी कुशलता से बनाकर समझाते हैं। उनका समझाने का यह ढंग निराला है।

हमारी कक्षा की स्वच्छता देखते ही बनती है। वे हमें अपने आस-पास का वातावरण स्वच्छ रखने की प्रेरणा देते हैं। व्यक्ति का समाज में क्या योगदान है, इसका आभास आज हम सब छात्रों को है। इन सबका श्रेय हमारे गुरुजी को ही जाता है। जीवन की सही दिशा दिखाने वाले और ज्ञान का पथ प्रदर्शित करने वाले मेरे प्रिय अध्यापक ही मेरे सच्चे गुरु हैं।

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