mujhe ek aap nimand mai sayeta kareye topic is mai aur mera parivar , mera priye khal,mera priye festival,mere rastereye basha

मित्र हम आपको तीन विषयों पर निबंध उपलब्ध करा रहे हैं। बाकी पर आप स्वयं लिखने का प्रयास करें।
मेरा परिवार और मैं
मैं अपने माता-पिता का एकलौता पुत्र हूँ। मेरे परिवार में दादा-दादी तथा मेेरे एक चाचा जी हैं। हम सब मिलकर साथ रहते हैं। हमारा परिवार दिल्ली में स्थित मोती बाग के सरकारी मकान में रहता है। मेरे पिताजी सरकारी कर्मचारी हैं और माताजी एक शिक्षिका हैं। मेरे माता चूंकि कार्य करने जाते हैं। अतः में दादा-दादी के प्रेम के बीच मेरा पालन-पोषण हो रहा है। चाचाजी मुझे पढ़ाते हैं। हम सब एक छत के नीचे प्रेम से रहते हैं। छुट्टी के दिन हम सब साथ रहते हैं। मेरा परिवार एक सुखी परिवार है। इस परिवार में नाराज़गी, कलह और दुख का नामोनिशान नहीं हैं। मेरी माताजी को दादा-दादी बेटी जैसा प्यार देते हैं और माताजी उनकी सेवा करती हैं। पिताजी के पास चूंकि समय की कमी परन्तु फिर भी वह अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं। घर में मुझे सबका प्यार मिलता है। मैं सबकी बातें मानता हूँ और सबकी उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयत्न करता हूँ।

मेरा प्रिय खेल हॉकी

विश्व में हॉकी के उद्भव व विकास में मतभेद माना जाता है। एक मत के अनुसार ईसा से दो हजार वर्ष पूर्व हॉकी का खेल फारस में खेला जाता था। वहाँ से होता हुआ, यह यूनान के ओलंपिक में भी खेला जाने लगा। परन्तु एक मत के अनुसार इसका आरम्भ ईरान से हुआ मानते हैं। भारत में हॉकी का आगमन 1908 में हुआ था। 7 नवम्बर, 1925 को 'अखिल भारतीय हॉकी संघ'की स्थापना हुई थी। इसके बाद 1926 से 1980 तक का काल भारत में हॉकी के स्वर्णिमकाल के रूप में जाना जाता है। हॉकी ही एक ऐसा खेल था, जिसने गुलामी की बेड़ियों में जकड़े भारतीयों को सम्मान से सर उठाने का मौका दिया था। मेजर ध्यान चंद का इसमें मुख्य हाथ रहा है। वह 'हॉकी के जादूगर' कहलाए जाते थे। जर्मनी के शासक हिटलर को ध्यान चंद के खेल ने चमत्कृत कर दिया था। हिटलर इनके खेल से इतना प्रभावित हुआ था कि उसने इन्हें जर्मन नागरिकता और जर्मन सेना में जनरल बना देने की पेशकश की थी। लेकिन ध्यान चंद ने इस पेशकश को विनम्रता से लौटा दिया। ध्यान चंद ऐसे लोगों में से एक थे, जिन्होंने गुलाम भारत को विश्व में विशिष्ट पहचान दिलाई।

इनकी अगुवाई में भारत ने 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक में तीन बार स्वर्ण पदक जीता था। आगे चलकर 1975 में भारत ने विश्वकप जीतने में भी सफलता पाई थी। भारत की हॉकी के लिए यह गर्व की बात थी। हॉकी के इस अभूतपूर्व प्रदर्शन ने हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल बना दिया। हॉकी ने अपनी विशेषता के कारण प्रत्येक भारतीय के दिल में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। धनराज पिल्लै ऐसे दूसरे व्यक्ति हैं, जिन्हें हॉकी का प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित खिलाड़ी माना जाता है। इनके प्रयासों के कारण भी हॉकी को लंबे समय तक के लिए जाना जाता है।

हॉकी में प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। इसमें मैदान को दो हिस्सों में बाँटा दिया जाता है। मैदान के दोनों किनारों पर गोल-पोस्ट होते हैं। गोल के सामने डी के आकार का अर्ध गोला बना होता है। इसे 'डी' कहते हैं। इस 'डी' के अंदर बॉल को मारने से यदि बॉल गोल-पोस्ट में चली जाती है, तो गोल माना जाता है। यह खेल 35-35 मिनट की पारियों में खेला जाता है। जो टीम अधिक गोल करती, वह विजयी कहलाती है। मैदान के बीचों-बीच खींची 'सेन्ट्रल रेखा' से इस खेल की शुरुआत होती है। इस खेल में गोल कीपर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। खिलाड़ी, हॉकी की सहायता से बॉल को लेकर आगे बढ़ते हैं और अपनी टीम के लिए गोल करने का प्रयास करते हैं। कुछ रक्षा प्रणाली (डिफेंस) में खड़े रहकर अपने साथी को गोल करने में सहायता करते हैं। उनके विपक्षी अपनी हॉकी से बॉल छिनने का प्रयास करते हैं। उनका यह प्रयास बड़ा आंनदायी होता है। खेल का रोमांच दोनों टीमों के बीच इसी समय देखा जा सकता है। दोनों का यही प्रयास होता है कि सामने वाला गोल न कर पाए।

मेरा प्रिय त्योहार
होली भारतीय पर्वों में आनंदोल्लास का पर्व है। नाचने-गाने, हँसी-मज़ाक, मौज-मस्ती करने व ईष्योद्वेष जैसे विचारों को निकाल फेंकने का अवसर है। फाल्गुन मास की पुर्णिमा को यह त्योहार मनाया जाता है। होली के साथ अनेक दंत-कथाएँ जुड़ी हुई हैं। होली से एक रात पहले होली जलाई जाती है। इसके लिए एक पौराणिक कथा है कि प्रह्लाद के पिता राक्षस राज हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे व विष्णु के परम विरोधी थे परन्तु प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने अनेकों बार उन्हें मारने का प्रयास किया। प्रह्लाद के पिता ने तंग आगर अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई।   होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था इसलिए होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई। यह कथा इस बात का संकेत करती है की बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी पूर्णिमा को होली जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं। यह त्योहार रंगों का त्योहार है। इस दिन लोग प्रात:काल उठकर रंगों को लेकर अपने नाते-रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाते हैं और उनके साथ जमकर होली खेलते हैं। बच्चों के लिए तो यह त्योहार विशेष महत्व रखता है। वह एक दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियाँ व गुब्बारे लाते हैं। बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठते हैं। सभी लोग बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते हैं। घरों में औरतें एक दिन पहले से ही मिठाई, गुजियां आदि बनाती हैं व अपने पास-पड़ोस में आपस में बाँटती हैं व होली का आनंद उठाती हैं। कई लोग ढोल, डफ, मृंदग आदि बजा कर नाचते-गाते हैं हुए घर जाकर होली मांगते हैं। गाँवों में तो होली का अपना ही मज़ा होता है। लोग टोलियाँ बनाकर कर घर-घर जाकर खूब नाचते-गाते हैं। शहरों में कहीं 'मूर्ख सम्मेलन' कहीं 'कवि सम्मेलन' आदि होता हैं। ब्रज की होली तो पूरे भारत में मशहूर है। वहाँ की जैसी होली तो पूरे भारत में देखने को नहीं मिलती है। कृष्ण मंदिर में होली की धूम का अपना ही अलग स्वरूप है। ब्रज के लोग राधा के गाँव जाकर होली खेलते हैं। मंदिर कृष्ण भक्तों से भरा पड़ा रहता है। चारों तरफ गुलाल लहराता रहता है। कृष्ण व राधा की जय-जयकार करते हुए होली का आनंद लेते हैं। परन्तु आजकल अच्छे रंगों का प्रयोग न करके रासायनिक लेपों, नशे आदि का प्रयोग करके इसकी गरिमा को समाप्त करक रहे हैं। आज के व्यस्त जीवन के लिए होली चुनौती है। इसे मंगलमय रूप देकर मनाया जाना चाहिए। तभी इसका भरपूर आनंद लिया जा सकेगा।

 

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