Munshi Premchand ki pramukh kahaniyon par prakash daliye.

प्रेमचंद एक उच्चकोटी के साहित्यकार हैं। उनकी रचनाओं में व्याप्त प्रेरणा मनुष्य का मार्ग प्रशस्त करती है। प्रेमचंद इसी कारण अधिक प्रसिद्ध रहे हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में मानवीय गुणों को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उनका मानना है कि  मनुष्य को अपने जीवन में सदाचार, सत्य आचरण, कर्मठ, स्वतंत्रता प्रिय होना चाहिए। आदर्शों और मूल्यों से रहित मनुष्य के अंदर भी वह अपनी रचनाओं के माध्यम से  इन गुणों का विकास करवा देते हैं। 'नमक का दारोगा' इनकी ऐसी ही रचना है। इसके अंदर जहाँ समाज और न्याय व्यवस्था भ्रष्ट पंडित अलोपीदीन की पक्षधर होती हैं, वहीं मुंशी वंशीधर ईमानदार और सत्यनिष्ठ के पक्षधर होते हैं। मुंशी वंशीधर अपने सिंद्धातों और मूल्यों के कारण अकेले पड़ जाते हैं। उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है और समाज तथा परिवार से अपमानित होना पड़ता है। परन्तु आखिर में उनके आदर्शों और मूल्यों की जीत होती है और पंडित आलोपीदीन द्वारा उन्हें सम्मानपूर्वक अपने पास उच्चपद पर रखने को विवश होना पड़ता है। उनकी यह रचना जहाँ मुंशी वशींधर जैसे व्यक्ति का उत्साह बढ़ाती है, वहीँ पंडित आलोपीदीन जैसे लोगों तथा भ्रष्ट सामजिक व्यवस्था के मुँह पर एक करारा तमाचा मारती है तथा उन्हें ऐसे लोगों का सम्मान करने के लिए प्रेरित करती है। 

ईदगाह कहानी में प्रेमचंद एक पाँच साल के बच्चे के द्वारा स्वतंत्रता और बड़ों के प्रति अपने कर्त्तव्यों के प्रति  लोगों को चेताती है।  एक पाँच साल का बच्चा अपने कार्य से दादी माँ को जहाँ भाव विभोर कर देता है, वहीँ अपने संगी-साथियों को निरुत्तर कर देता है। उनकी रचना बहुत ही सधे हुए रूप में आरंभ होती है और कहानी के मूल तत्व को पकड़े हुए आगे बढ़ती है। कहानी का एक-एक शब्द मनुष्य को सोचने पर विवश कर देता है कि मनुष्य को किस प्रकार का जीवन जीना चाहिए। वह पाठक के दिमाग में अनेक प्रश्नों के अंबार लगा देते हैं और उनका उत्तर भी देते जाते हैं। वह लोगों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उनकी सोच को परिष्कृत करते हैं। उनकी कहानियों में 'बड़े घर की बहु' ऐसी ही एक कहानी है, जहाँ वह स्त्री सुलभ कमियों का बखान करते हैं वहीं वह स्त्री को घर का मजबूत आधार स्तंभ बताते हैं, जो घर को तोड़ने के स्थान पर जोड़े रखती है। स्त्री का विशेष रूप में आदर करते हैं और मानते हैं उनके बिना परिवार की कल्पना करना कठिन है। वहीं वह लोगों को भी उनका मान-सम्मान करने के लिए प्रेरित करते हैं। 'पूस की रात' ऐसी ही कहानी है, जो किसान के जीवन की विसंगतियों की ओर संकेत करती है। एक किसान कड़ी मेहनत करता है। फसल को पैदा करता है परन्तु अंतत उसके हाथ कुछ नहीं लगता। ज़मीदारों और साहूकारों द्वारा उसके जीवन को नरक बना दिया जाता है। पूस की रात ऐसे ही किसान की कहानी को दर्शाती है, जो मजबूर होकर अपने प्राणों के लिए अपनी फसल को जानवरों के हाथों बरबाद होने देता है। वह इतना बेबस और मजबूर होता है कि अपने  लिए एक कंबल नहीं जुटा पाता। 

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