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my festival holi
होली के साथ अनेक दंत-कथाएँ जुड़ी हुई हैं। होली से एक रात पहले पूर्णिमा की रात्रि को होली जलाई जाती है। इसके लिए एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है कि 'भक्त प्रह्लाद' के पिता राक्षस राज 'हिरण्यकश्यप' स्वयं को भगवान मानते थे। वह विष्णु के परम विरोधी थे। परन्तु उनका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। उन्होंने भक्त प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से बहुत रोका। जब वह नहीं माने, तो उन्होंने अनेकों बार उन्हें मारने का प्रयास भी किया। प्रह्लाद के पिता ने तंग आकर अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी। परन्तु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई। तभी से होलिका दहन किया जाता है। गाँवों में तो होली का अपना ही आनंद होता है। लोग टोलियाँ बनाकर घर-घर जाकर खूब नाचते-गाते हैं। शहरों में कहीं 'मूर्ख सम्मेलन' कहीं 'कवि सम्मेलन' आदि होता हैं। ब्रज की होली तो पूरे भारत में मशहूर है। वहाँ की जैसी होली तो पूरे भारत में देखने को नहीं मिलती है। कृष्ण मंदिर में होली की धूम का अपना ही अलग स्वरूप है। ब्रज के लोग राधा के गाँव जाकर होली खेलते हैं। मंदिर कृष्ण भक्तों से भरा पड़ा रहता है। चारों तरफ गुलाल लहराता रहता है। लोग कृष्ण व राधा की जय-जयकार करते हुए होली का आनंद लेते हैं। परन्तु आजकल अच्छे रंगों का प्रयोग न करके रासायनिक लेपों आदि का प्रयोग करते हैं, जो मनुष्य के लिए हानिकारक है। होली के दिन कुछ लोग शराब पीकर उदंगड मचाते हैं, जिससे इसकी गरिमा को नुकसान पहुँचता है। इसे मंगलमय रूप देकर मनाया जाना चाहिए। तभी इसका भरपूर आनंद लिया जा सकेगा।