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भारतीय संस्कृति में दीपावली त्योहार का अपना ही महत्व है। यह पर्व कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस त्योहार में भारतीय लोगों में विशेष उत्साह देखा जाता है। लोग महीनों से इस त्योहार की तैयारियाँ आरंभ कर देते हैं। लोग अपने घरों और दुकानों की सफाई कर उन्हें रंगवाते हैं। नए साजो-समान से घर को सजाया जाता है। बाज़ारों में भी प्रत्येक दुकान विभिन्न सजावटी समानों से भरी होती है। विभिन्न तरह के मिष्ठान भी बाज़ारों की शोभा बढ़ाते हैं। इस दिन अपने सगे-संबंधियों को मिठाई और उपहार देने की परंपरा है।
अमावस्या की काली रात में सहस्र दीपों को जलाकर उसे पूर्णिमा की रात में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस दिन लक्ष्मी और गणेश पूजन की भी परंपराएँ हैं। दुकानदारों और व्यापार करने वालों के लिए तो यह बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन सब अपने बही-खातों की पूजा करते हैं। पुराणों में इसका बहुत महत्व माना जाता है। अयोध्या के राजा राम इसी दिन राक्षस-राज रावण को मार चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या आए थे। अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए पूरी नगरी को दीपों से प्रकाशमान किया था। तबसे आज तक इस त्योहार को बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
दीपावली वाले दिन बच्चे पटाके लाते हैं और इसे जलाकर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। लोग अपने आस-पड़ोस और संगे-संबधियों को मिठाई बाँटते हैं। दीपावली का त्योहार हमें अधर्म पर धर्म की जीत, असत्य पर सत्य की जीत और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।
दीपवाली का त्योहार प्रेम से मनाना चाहिए परन्तु लोग इस दिन लक्ष्मी पूजा के नाम पर जुआ खेलतें हैं जो कि सही नहीं है। प्रसन्नता के नाम पर लोग बहुत सारे पटाखे जलाते हैं जो कि पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। हमें चाहिए इस त्योहार को इस तरह मनाएँ कि इसका गौरव सदा हमें याद रहे और हमारा वातावरण भी प्रदूषण मुक्त हो

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