please tell me anuched on man ke hare har hai man ke jeete jeet

 

हमारे जीवन में अचानक ही कई ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं। जो हमारे मानस पटल पर हमेशा के लिए अंकित हो जाती हैं। उस घटना की छाप हमारे जीवन में इस प्रकार पड़ती है कि स्थिति अस्त-व्यस्त हो जाती है। ऐसा लगता है मानो दिमाग चेतना शून्य हो गया है और सोचने समझने की शक्ति खत्म हो गई है। उस स्थिति को यदि जल्दी ही काबू में न लाया जाए, तो मनुष्य जीवन में असफल सिद्ध हो जाता है। एेसे समय पर ही मनुष्य की बुद्धिमानी व धैर्य का परिचय देखा जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ 2009 में हुआ। उस घटना को मैं कभी नहीं भूल सकती क्योंकि यह पहली घटना थी जिसने मुझे घोर निराशा भी प्रदान की व उससे लड़ने के लिए मार्गदर्शन भी दिया। इसके पश्चात् मैंने कई मुश्किलों का सामना किया पर वह मुश्किल मेरे आत्मविश्वास को तोड़ नहीं पाई। बात उन दिनों की है, जब मैंने दसवीं की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। मैं हमारे घर के समीप नगर पालिका के विद्यालय में पढ़ती थी। पिताजी मेरे लिए उज्ज्वल भविष्य चाहते थे। हमारे विद्यालय में विज्ञान विषय का अभाव होने के कारण मेरा वहाँ पढ़ना अब संभव नहीं था। पिताजी ने मन बना लिया था कि वह मुझे दिल्ली के केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश दिलवाएँगे ताकि मुझे मेरी रुचि के अनुसार विषय प्राप्त हो सकें और मैं अपनी पढ़ाई को बिना किसी विघ्न के पूरा कर सकूँ। विद्यालयों में प्रवेश की समय सीमा 1 जून से 20 जून तक रखी गई थी। पिताजी ने समय न गँवाते हुए निश्चित किया कि 1 जून को मैं और पिताजी, सभी प्रमाण पत्र सहित घर से निकल पड़ेंगे क्योंकि विद्यालय हमारे घर से दूर था। हमने वहाँ जाने के लिए बस का चयन किया। सुबह का समय कार्यालय व स्कूल जाने का समय होता है। इसलिए हमें भरी बस में, भीड़ में काफी संघर्ष करना पड़ा। जैसे-तैसे मैं और पिताजी विद्यालय जा पहुँचे। विद्यालय पहुँचकर हमें दाखिला-पत्र भरने के लिए दिया गया। पिताजी द्वारा दाखिला-पत्र की अधिकतर औपचारिकताएँ पूरी कर दी गई थीं। विद्यालय में क्लर्क ने दाखिला-पत्र के साथ 10वीं का प्रमाण-पत्र माँगा तो हमें याद आया कि हमारे पास प्रमाण-पत्र का थैला नहीं था। बस की भीड़-भाड़ में वह थैला वहीं पर छूट गया था। विद्यालय पहुँचने की जल्दी में हमें इस बात का स्मरण ही नहीं रहा कि प्रमाण-पत्र की फ़ाइल हमारे हाथ से गिर गई है। पिताजी और मैं वहीं कुछ क्षण तक हैरान-परेशान खड़े रहे। हमें कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि हम आगे क्या करें। मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। पिताजी ने सयंम से काम लिया व प्रधानाचार्य से बात करने चले गए। प्रधानाचार्य को उन्होंने हमारी स्थिति से अवगत कराया परन्तु वह कुछ मानने और सुनने के लिए तैयार न हुए। पिताजी द्वारा बहुत अनुनय-विनय करने पर उन्होंने इस शर्त पर दाखिले के लिए स्वीकृति दी कि यदि आपकी पुत्री मेरे सम्मुख दोबारा से 10 कक्षा के सभी विषयों के प्रश्न-पत्र हल कर देगी तो वह मुझे दाखिला दे सकते हैं। साथ में 10 दिनों के अंदर सभी प्रमाण-पत्र जमा करवाने के लिए कहा। पिताजी ने मुझे प्रधानाचार्य जी के द्वारा कही बात बताई व ढाँढस बँधाया कि मुझे इसी समय दोबारा गणित और विज्ञान संबंधी विषयों के प्रश्न-पत्रों को हल करना पड़ेगा। एक बार के लिए मेरा आत्मविश्वास टूट गया था कि मैं कैसे दोनों विषयों के प्रश्न-पत्रों को हल करुँगी। निराशा जैसे मेरे मस्तिष्क में बढ़ती जा रही थी। मैंने हार मान ली थी कि कुछ नहीं हो सकता। परन्तु पिताजी के द्वारा दी गई हिम्मत ने मेरे अंदर नई शक्ति का संचार किया। मेरे द्वारा सभी प्रश्न-पत्र हल कर दिए गए और प्रधानाचार्य ने मेरी तीक्ष्ण बुद्धि व आत्मविश्वास की खूब तारीफ़ की और मुझे विद्यालय में दाखिला मिल गया। पिताजी ने भाग-दौड़ कर सी.बी.एस.ई बोर्ड से मेरे प्रमाण-पत्रों की नई प्रतिलिपि बनवाई और विद्यालय में जमा करवा दी। यदि उस समय मैंने हिम्मत छोड़ दी होती, तो शायद ही मैं उस मुसीबत से निकल पाती। इस घटना ने मुझे यह सीख दी है कि विषम परिस्थितियों में सयंम बनाए रखना चाहिए। किसी ने सही कहा है, ' 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ' '

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