sanklit sakhiya aur sabad ke aadhar par kabir ke dharmik aur sanpradayik sadbhav par parkash daliy 

नमस्कार मित्र!
कबीरदास जी ने अपनी साखियों और सबद में मनुष्य को आंडबरों और व्यर्थ के पुजा/नमाज़ के स्थान पर मनुष्य को ईश्वर को अपने अंदर ढूँढने के लिए कहा है। उनके अनुसार ईश्वर हमारे ह्दय में वास करते हैं। उन्हें पाने के लिए हमारी भक्ति और श्रद्धा ही बहुत है। मनुष्य धर्मों में विभाजित ही इनके कारण हुआ है। वह स्वयं के ईश्वर को सबसे अच्छा मानता है और इसी कारण लोगों के अंदर धर्म के नाम पर अलगाव उत्पन्न हो जाता है। उनके अनुसार इन आंडबरों को छोड़कर हमें ईश्वर की सच्ची भक्ति करनी चाहिए। सबके साथ प्रेम से रहना, धर्मों के नाम पर लड़ना नहीं चाहिए। यह अलगाव एक स्थान की शांति को भंग कर देते हैं। हमें चाहिए मानवता की सेवा को सच्चा धर्म मानकर सद्भावना कायम करें। यही सच्चा धर्म है। उन्होंने अपने साखियों और सबद के द्वारा व्यंग्य करके लोगों को जाग्रत करने का प्रयास किया है।
 
आशा करती हूँ कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

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