shehari jeevan and pradushan essay

मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं, ऐसी वस्तुओं का निर्माण किया है, जो हमारे लिए सोचना भी संभव नहीं था। मनुष्य ने अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अपनी कल्पना को साकार किया। इस वैज्ञानिक युग ने जहाँ एक ओर हमें प्रगति व उन्नति के पथ पर अग्रसर किया है, वहीं दूसरी ओर उसने पर्यावरण का सबसे बड़ा नुकसान किया है। आधुनिक युग या यूँ कहे शहरी जीवन ने प्रकृति की जीवन शैली को भयंकर आघात पहुँचाया है। इस आघात से उत्पन्न घाव से उभरने के लिए मनुष्य को शायद ही प्रकृति द्वारा समय दिया जाए। प्रकृति के बिना पृथ्वी पर रहने की कल्पना करना ही पूरे शरीर में सिहरन भर देता है। प्रकृति भगवान द्वारा दी गई बहुमूल्य भेंट है। प्रकृति, मनुष्य को सदैव देती रही है और हम याचक की तरह उसके समक्ष भिक्षा का पात्र लेकर खड़े रहे हैं। परन्तु आज स्थिति दूसरी बन गई है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने में शहरों का मुख्य हाथ रहा है। शहर आज आधुनिकता का नकाब ओढ़े प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्होंने सुख-सुविधाओं और आधुनिकता के नाम पर प्रकृति का इतना दोहन कर लिया है कि इसने अपना मैत्री भाव छोड़कर विकराल रुप धारण कर लिया है। परिणामस्वरुप जलीय, थलीय एवं वायुमंडलीय प्रदूषण बढ़ गया है। प्रदूषण का सबसे पहला प्रकार है- भूमि प्रदूषण। शहरों द्वारा उत्सर्जित औद्योगिक कचरे के फैलाव के कारण अनेक समस्याओं व बीमारियों को आमंत्रण मिला है। जगह-जगह मानव निर्मित कचरे के ढेर दिखाई देते हैं, जिससे मनुष्य व अन्य प्रकार के प्राणियों के लिए अधिक खतरा मंडरा रहा है। वनों के कटाव से भूमि के कटाव की समस्या और रेगिस्तान के प्रसार की समस्या सामने आई है। वनों के अत्यधिक कटाव ने जंगली जानवरों के अस्तित्व को संकट में डाला है। शहरों द्वारा ऊर्जा के उत्पादन के लिए वृक्षों की कटाई से स्थायी क्षय हुआ है। शहरों में रसायनों के अत्यधिक प्रयोग ने मिट्टी संबंधी प्रदूषण को बढ़ाया है। इससे इसकी उर्वरता पर प्रभाव पड़ा है। शहरों द्वारा उत्सर्जित मल-मूत्र, रासायनिक तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थ नदियों के माध्यम से सागरों में छोड़े जा रहे हैं, जिसके कारण जल प्रदूषण बढ़ रहा है। जल स्रोत फिर वे चाहे भूमिगत हो, या नदियों से मिलने वाला जल, सब दूषित हो रहे हैं। इन सभी समस्याओं पर यदि अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो आगे चलकर ये सभी समस्याऐं विकरालता की हद को भी पार कर जाएँगी। आज पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के कारण नित नई बीमारियाँ अपना मुँह खोले मनुष्य को काल का ग्रास बनाने के लिए तैयार हैं। एक बीमारी से हम निजात पाते नहीं कि नई बीमारी आ खड़ी होती है।

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