एक तालाब में एक कछुआ और दो बगुले रहा करते थे। कछुआ स्वभाव से बहुत बातूनी था। इसके विपरीत दोनों बगुले गंभीर तथा समझदार। फिर भी इन तीनों में घनिष्ट मित्रता थी। उनके दिन वहाँ सुख से बीत रहे थे।
एक बार की बात है, वहाँ पर भयंकर सूखा पड़ा। सूखे के कारण आस-पास का इलाका ही नहीं तालाब भी सूख गया। भोजन के और पानी के लाले पड़ने लगे। तीनों बड़े परेशान थे।
एक दिन कछुआ बोला, "मित्रों! हमें शीघ्र यहाँ से चल देना चाहिए नहीं, तो हम भूख और प्यास से मारे जाएँगे।" बगुलों को उसकी बात अच्छी लगी। वे दोनों बोले, "मित्र! हम जाकर कोई सुरक्षित और हरा-भरा स्थान देख आते हैं। तुम तब तक हमारी प्रतीक्षा करो।" ऐसा कहकर वे चल पड़े।
उन दोनों को दूर एक हरा-भरा स्थान मिल गया था। अब प्रश्न यह था कि कछुए को वहाँ कैसे लेकर जाएँ। दोनों बगुलों ने एक सुझाव दिया। उनके अनुसार एक लकड़ी को कछुआ मध्य से अपने मुँह से पकड़ लेगा और वे उस लकड़ी को दोनों किनारों से पकड़ लेगें। इस तरह वे कछुए को नए स्थान पर ले चलेंगे। उन्होंने कछुए को सख्त हिदायत दी कि वे किसी भी कीमत पर बात न करे। क्योंकि यदि वह बोलने के लिए मुँह खोलेगा तो मुसीबत में पड़ सकता है। कछुआ इस बात को मान गया।
कछुए ने बगुलों के कहे अनुसार लकड़ी पकड़ ली। वे तीनों आकाश में उड़ने लगे। कछुए को उड़ान भरना अच्छा लग रहा था। वे एक गाँव के ऊपर से गुजरे। लोग आकाश में कछुए और बगुले को उड़ते देख बड़े हैरान थे। वे बातें बनाने लगे और कछुए की स्थिति पर हँसने लगे। कछुआ ये सब सुनकर गुस्से में भर गया। बगुले लोगों की बात सुनकर अनसुना करते रहे। उनके लिए मंज़िल अधिक प्रिय थी।
कछुए ने मन-ही-मन सोचा की लोग हमारा मज़ाक उड़ा रहे हैं। इन्हें बताना बहुत आवश्यक है। नहीं तो हम सबके आगे हँसी के पात्र बन जाएँगे।
कछुए ने जैसे ही बोलने के लिए मुँह खोला। वह धड़ाम से ज़मीन पर आ गिरा। ज़मीन पर गिरते ही उसके प्राण निकल गए। लोग उस पर हँसते हुए चले गए। बगुले भी आगे बढ़ गए। इसलिए कहा गया है कि बिना सोचे-समझे बोलना भी मनुष्य को गंभीर मुसीबत में भी डाल सकता है। यदि कछुआ चुप रहता और लोगों की बात अनसुनी कर देता, तो वह अपने मित्रों के साथ अन्य तालाब में सुखपूर्वक रह रहा होता।