10 dohe on ishwar ke prati prem

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रहीम के दोहे
| Rahim ke Dohe (भक्ति/Devotion)

जे गरीब सों हित करै धनि रहीम वे लोग
कहा सुदामा बापुरो कृश्राा मिताई जोग ।
रहीम कहते हैं कि जो लोग निर्धन और असहाय की सहायता करते हैं वे धन्य हैं ।
निर्धन सुदामा से मित्रता कर कृश्ण ने उसकी निर्धनता दूर की ।इसी से वे दीनबंधु
कहलाये ।

गहि सरनागत राम की भवसागर की नाव
रहिमन जगत ईधार कर और न कछु उपाव।

इस संसार सागर की नाव राम की शरराा में है।
वही हमें माया के जाल से मुक्ति दिला सकता है।
अन्य कोई उपाय रहीम नही देखते ।

कहा करौ बैकुंठ लै कल्प बृक्ष की छाॅह
रहिमन ढाक सुहावनो जो गल पीतम बाॅह ।

रहीम को स्वर्ग का सुख और कल्पबृक्ष की छाया से कुछ भी मतलब नही है।वे इनकी
कामना नहीं करते।उन्हें ढाक का बृक्ष सुहाना लगता है जहाॅ वे अपने प्रिय इश्वर के
गले में बाॅह डालकर बैठ सकते है ।

अंजन दियो तो किरकिरी सुरमा दियो न जाय
जिन आखिन सों हरि लख्यो रहिमन बलि बलि जाय ।

अंजन और सुरमा से आॅख का भला नहीं होगा ।इन आॅखों से प्रभु का दर्शन करो ।
रहीम कहते हैं कि तुम्हारा जीबन धन्य हो जायेगा।

दीन सबन को लखत है दीनहि लखै न कोय
जो रहीम दीनहि लखत दीनबन्धु सम होय ।

गरीब दुखियारी लोग सबकी अेार आशा से देखते रहते हैं किंतु उनकी ओर कोई
नहीं देखता । लेकिन जो ब्यक्ति दुखियों की ओर देखता है वह दीनबंधु भगवान की
तरह पूज्य होता है र्।

रहिमन गली है साॅकरी दूजो ना ठहराहिं
आपु अहै तो हरि नहीं हरि तो आपुन नाहिं ।

हृदय की गली अत्यंत संकीर्ण है।उसमें दो आदमी नहीं ठहर सकते हैं।
उसमें यदि हमारा अहंकार रहेगा तो प्रभु नहीं रहेंगें और प्रभु के रहने पर अहंकार नहीं रहेगा। अतःप्रभु को अपने ह्रदय में रखने के लिये अपने अहंकार का नाश करो।

रहिमन धोखे भाव से मुख से निकसे राम
पावत पूरन परम गति कामादिक कौ धाम ।

यदि कभी धेाखा से भी भाव पूर्वक मुॅह से राम का नाम लिया जाये तो उसे कल्याणमय परम गति प्राप्त होता है भले हीं वह काम क्रोध लोभ मोह पाप से कयों न
ग्रस्त हो।

मानुस तन अति दुर्लभ सहजहिं पाय
हरि भजि कर सत संगति कह्यौ जताय ।

मनुश्य का शरीर प्राप्त करना दुर्लभ है परन्तु प्रभु के भजन सुमिरन और संत की
संगति के द्वारा इसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

 
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