aajkal ke bahut se samachar patra aur chanel dosho ka pardafash kar rahe hai, iss prakar ke samacharo aur karyakramo par tarka sahit vichar likhiye

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आपने यह नहीं लिखा है की इस विषय के पक्ष में विचार देने हैं या विपक्ष में परन्तु आपकी सहायता हेतु हमने इस विषय के पक्ष व विपक्ष दोनों में तर्क सहित विचार दिए हैं। यह उम्मीद करते हैं की यह आपके लिए कारगर साबित होगा।
आज का वर्तमान युग मीडिया का युग है। बदलते समय के साथ मीडिया के रूप व अधिकारों में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला है। अंग्रेजों के कारण ही भारत में मीडिया का आगमन हुआ। समाचार पत्रों ने आज़ादी की लड़ाई में मुख्य भूमिका निभाई व पूरा भारत इन्हीं समाचार-पत्रों के कारण आपस में जुड़ा रहा। अंग्रेजों ने समाचार पत्रों के प्रकाशन को बड़ी कडाई से प्रतिबंध लगा रखा था। सरकार विरोधी कार्य की तो आलोचना कर जुर्म था। फिर भी कई देशभक्तों ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए समाचार-पत्रों के द्वारा अंग्रेज़ी शासन की काली करतूतें बताकर जनता को चेताया व उन्हें आज़ादी पाने के लिए प्रोत्साहित किया। उस समय भी समाचार पत्रों ने अपनी भूमिका को सिद्ध कर दिया था। परन्तु वह एक आज़ादी की लड़ाई थी। अब समय बदल चुका है, आज टी.वी पर न्यूज चैनलों की भरमार है।, आज की माडिया (समाचार व न्यूज चैनलों) पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। टी.वी पर चैनलों की भरमार ने उनके बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ा दिया है। इस प्रतिस्पर्धा की होड़ ने लोगों के जीवन में घुसकर खबरें लाकर जनता के सम्मुख पेश करने का प्रचलन बढ़ रहा है। आरंभ में जब इस तरह को कोई कार्यक्रम य समाचार जब आता था तो वह मूर्ख बन रही जनता को चेताने के लिए था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है 'जैसिका लाल हत्याकांड' जैसिका के परिवार ने उसके हत्यारे को सज़ा दिलवाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी थी परन्तु एक ऊँचे राजनेता के बेटे होने के कारण वह बचता रहा। सात साल तक यह केस चला और मनु शर्मा को बरी कर दिया गया। तब मीडिया के जबरदस्त दबाव ने इस केस की पोल खोल के रख दी। एन.डी.टी.वी, तहलका पत्रिका, हिन्दुस्तान टाइम्स जैसे न्यूज चैलन व समाचार पत्रिकाओं ने इस केस का रूख ही मोड़ दिया व सरकार पर ऐसा दबाव बनाया की उसके मुज़रिमों को सज़ा मिलकर रही। यह मीडिया का प्रभावशाली रूप था। लेकिन जैसे-जैसे चैनलों में आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही हैं, वह अपने सच्चाई के रास्ते से भटक रहे हैं। आज बस स्वयं को अच्छा साबित करना है फिर चाहे बिना छानबीन किए बिना किसी भी खबर को छाप दिया जाए। जहाँ, मीडिया सच के लिए लड़ सकता है, वहाँ वह स्वयं के लिए लड़ता नज़र आने लगा है। 'राखी का इंसाफ' नामक धारवाहिक इस सच के खेल का फूहड़ रूप है, इसके कारण एक व्यक्ति को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है। हम सच्चाई पेश करने के चक्करों में लोगों के जीवन में गहराई से जाकर उस सच को निकाल रहे हैं जो समाज के साथ उस व्यक्ति की जिंदगी को भी बरबाद कर सकता है। इन समाचार पत्रिकाओं व चैनलों को चाहिए झूठ का पर्दा उठाए न की लोगों के जीवन के परदे को उठाए।  
 
मैं आशा करती हूँ कि आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
ढेरों शुभकामनाएँ !

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