aj ki shiksha bachpan ko nigal rahi hai iske bare me
आज का शिक्षा का स्तर कैसा है? इस विषय में टिप्पणी करना ठीक नहीं लगता। परन्तु शिक्षा के नाम पर बच्चों के साथ क्या-क्या हो रहा है? यह बहुत ही दर्दनाक है। पहली-दूसरी के बच्चो के कंधों पर किताबों के बोझ ऐसे लाद दिए जाते हैं मानो वे गधे हों। इन किताबों को पढ़ने में ही उनका सारा समय निकल जाता है। इससे उन्हें खेलने के लिए समय ही नहीं मिलता। दबाब इतना बढ़ जाता है कि उनमें मानसिक तनाव होना स्वाभाविक है। इस तरह उनका बचपन समाप्त हो रहा है। कमर दर्द, थकान, आँखों संबंधी बीमारियाँ उन्हें बचपन से ग्रस रही हैं। बच्चों की उम्र में खेलने के स्थान पर किताबों में डूबे रहना उनके लिए उचित ही नहीं खतरनाक है।