ak farivala ki atmakatha

फेरीवालों को गली-मोहल्लों तथा बाज़ारों में देखा जा सकता है। भारतीय समाज में इनकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है। हम घूम-घूमकर लोगों की आवश्यकताओं का सामान घर बैठे उपलब्ध करवाते हैं। हमारी आवाज़ें सुबह से लेकर रात तक सुनी जा सकती हैं। सब्ज़ी से लेकर घर तक के दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं तक को हम घर-घर पहुँचाते हैं। इनमें से एक में हूँ। मेरे बहुत से साथी हैं, जो खिलौने, कुल्फी, चूड़ी, कपड़े, गुड़, बांसुरी, फल, सब्जी, आइसक्रीम आदि की फेरी लगाते हैं। मैं एक गरीब परिवार से संबंधित हूँ। मैं सब्ज़ी बेचकर अपना निर्वाह करता हूँ। मैंने 12 साल की उम्र से फेरी लगाना आरंभ कर दिया था। पहले पिताजी के साथ जाता था फिर बाद में स्वयं अलग फेरी लगाने लगा। आज मुझे फेरी लगाते हुए 12 साल हो गए हैं। इस फेरी से मैंने अपना छोटा-सा पक्का घर बना लिया है तथा मेरा बेटा अच्छे स्कूल में पढ़ता है। मैं लोगों को घर-घर जाकर सब्ज़ी बेचता हूँ और सिर उठाकर अपनी जीविका चला रहा हूँ। मेरा काम कठिन ज़रूर है परन्तु मुझे इससे बहुत प्यार है।

  • 1
What are you looking for?