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जब बाल गोबिन भगत का मन उनके तन पर हावी हो जाता था, तब वे खँजड़ी लेकर नृत्य की मुद्रा में आ जाते थे। साथ ही, सब लोग भी अपने तन और मन दोनों से नाचने लगते थे। सारा वातावरण नृत्य-संगीत से झूम उठता था।
 

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