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Chapter- manveya karuda ke divya chamak

 मित्र 

फ़ादर बुल्के पूरी तरह से भारतीय संस्कृति को आत्मसात कर चुके थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति से प्रेरित होकर सन्यास लेते समय यह शर्त रखी कि भारत आएँगे। भारत आकर उन्होंने हिंदी में बी.ए. किया, इलाहाबाद से एम.ए. किया, फिर 'प्रयाग विश्वविद्यालय' के हिंदी विभाग से "रामकथा : उत्पत्ति और विकास" पर शोध कर उन्होंने पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 'ब्लू बर्ड' तथा बाइबिल का हिंदी अनुवाद भी किया तथा अपना प्रसिद्ध अंग्रेज़ी-हिंदी कोश भी तैयार किया। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रुप में प्रतिष्ठित करने के लिए कई प्रयास भी किए। उनका पूरा जीवन भारत तथा हिंदी भाषा पर समर्पित था। अत: हम यह कह सकते हैं कि फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। उन्होंनेे हिंदी को राजभाषा बनानेेे के लिए बहुत प्रयास किए।

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कहा जाता है कि लॉर्ड थॉमस मैकाले वह शख्स था जिसने 1835 में देसी भाषाओं की जगह अंग्रेजी को भारतीय शिक्षा का मुख्य माध्यम बना डाला. मैकाले के सुझाव पर ही अंग्रेजों ने अपनी भाषा और ज्ञान विज्ञान को भारत पर थोपा. मकसद था कि अगली कुछ पीढ़ियों में भारतीय उन जैसे बन जाएं. मैकाले का मानना था कि दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान अंग्रेजी और यूरोपीय सभ्यता में निहित है. वह भारतीय भाषा और ज्ञान को दोयम दर्जे का मानता था. हालांकि मैकाले की इस सोच से भारतीय तो छोड़िए कई यूरोपीय लोग ही सहमत नहीं हुए. वहां के कई ऐसे विद्वानों ने अपनी पूरी जिंदगी यहां के ज्ञान-विज्ञान और भाषा को संवारने में लगा दी. फादर कामिल बुल्के इन्हीं विभूतियों में से एक थे. इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि मैकाले की शिक्षा और भाषा नीति के लागू होने के ठीक 100 साल बाद कामिल बुल्के पहली बार भारत आए और यहीं के होकर रह गए. हालांकि उन्हें यहां ईसाई धर्म-प्रचार के लिए भेजा गया था. लेकिन यहां आने पर उन्हें भारतीय भाषाओं विशेषकर हिंदी ने ऐसा मोहित किया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन हिंदी की सेवा में खपा दिया. बेल्जियम में एक सितंबर 1909 को पैदा हुए फादर बुल्के ने 1950 में भारत की नागरिकता ली थी. Hindi kiअप्रतिम सेवा के लिए उन्हें 1974 में देश का तीसरे सर्वोच्च सम्मान पद्मभूषण तक से नवाजा गया.
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