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प्रिय मित्र!
 आप के चित्र से आपका प्रश्न स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। तथापि हम इसका उत्तर देने का प्रयास कर रहे हैं।

 
चंद्रकांत जी अपने मन में  दबी जिज्ञासा को पूरा करने के लिए दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक गए परन्तु उन्हें कभी यमराज का घर दिखाई नहीं दिया। उसी समय माँ की बात याद आई वह कहती थी कि दक्षिण दिशा को लाँघ लेना सम्भव नहीं था। चंद्रकांत जी कहते हैं यदि मैं दक्षिण दिशा के छोर (अन्त) तक पहुँच पाता तो यमराज के घर को देख लेता। चंद्रकांत जी आगे कहते हैं कि बीते जमाने से आज के समय की परिस्थिति बिलकुल अलग है। आज आप जिस दिशा पर पैर करके सोओ वहीं दक्षिण दिशा के समान हो जाती है। आज लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए दूसरों पर अत्याचार, शोषण करना शुरू कर दिया है। यदि उनके स्वार्थ के लिए किसी की जान भी जाती है तो उनको तनिक भी दया नहीं आती हैं। आज सभी दिशाओं में इन्हीं स्वार्थी मनुष्यों रूपी यमराजों के बड़े-बड़े महल खड़े हैं। वे सब अपने स्वार्थ के लिए यमराज की भांति दहकती स्वार्थी आँखों से देखते हुए विराजते हैं।
 

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