apni kisi yatra ke khatte mithe anubhavon ko yad karte hua ak lekh likho

आप इसे इस तरह से लिख सकते हैं- 

एक बार हम पापा के साथ उनकी पुरानी कार में देहरादून के लिए जाने के लिए तैयार हुए। पापा ने दादाजी की ली हुई वृद्ध (पुरानी) कार में जाना उचित समझा। उसे देखकर हमें अपने दादाजी की याद आ जाती थी। जो बात-बात पर खांसा करते थे। यह कार भी इसी तरह कुछ देर में अजीब सी ध्वनि निकाला करती थी। इसके इंजन से खांसी स्वरूप काला धुँआ निकल पड़ता था। पिताजी को बहुत समझाने पर भी जब वह नहीं माने, तो हमें उनकी जिद्द के अनुसार कार में जाना पड़ा। सुबह पाँच बजे हम सब कार में सवार हुए कार खर्र-खर्र की ध्वनि निकाल रही थी। ऐसा लग रहा था। मानो आनंद से नींद में सो रही हो, जिसे पिताजी ने चाबी मारकर उठा दिया हो। वह चलने से पहले इतनी ज़ोर का झटका खाई मानो, गुस्से में कह रही हो जाओ मैं नहीं जाती। पिताजी बार-बार उसे चाबी डालकर चला रहे थे और वह झटके खा-खाकर चुप हो जाती। आखिर आधे घंटे के प्रयास से जब उसने जोर का झटका मारा तो मानो हम सब की जान निकल पड़ी। ऐसा लगता था मानो कह रही हो तुम तो मेरी उम्र का लिहाज़ भी नहीं करते। आखिर तंग आकर पिताजी ने  इस कार से जाने का इरादा बदल दिया और हम अपनी पुरानी कार घर में छोड़कर चल दिए।

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