atmatran kavita me kavi tran kyo nahi chahata

मित्र ईश्वर से त्राण नहीं चाहता है। वह चाहता है कि स्वयं दुख, भय, बाधाओं से लड़े और उनसे जीतकर दिखाए। इस तरह वह स्वयं को मज़ूबत बनाना चाहता है।

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