bade bhai sahab paath ka sandesh likhiye

यह कहानी सीख देती है कि मनुष्य उम्र से नहीं अपने किए गए कर्मों और कर्तव्यों से बड़ा होता है। वर्तमान युग में मनुष्य विकास तो कर रहा है। परन्तु आदर्शों को भुलता जा रहा है। भौतिक सुख एकत्र करने की होड़ में हम अपने आदर्शों को छोड़ चुके हैं। हमारे लिए आज भौतिक सुख ही सब कुछ है। अपने से छोटे और बड़ों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियाँ हमारे लिए आवश्यक नहीं है। प्रेमचंद ने इन्हीं कर्तव्यों के महत्व को सबके सम्मुख रखा है।

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