bhaavarth of poem in hindi chapter 4

नमस्कार मित्र!
एक लड़की चाँद से बातें करते हुए उससे पूछती है, आप बहुत गोल हैं मगर आप जरा-सा तिरछे नजर आते हैं। आपने आकाश रूपी वस्त्र पहना हुआ है जो तारों से जड़ा हुआ है। वह आगे कहती है कि इस आकाश रूपी कपड़े से आपका केवल मुहँ दिखता है जो बहुत सफ़ेद व गोल-मटोल है। वह आगे कहती है कि आपने अपनी पोशाक रूपी आकाश को चारों दिशाओं में फैलाया हुआ है। फिर भी अनोखी बात यह है कि आप कुछ तिरछे से क्यों दिखाई देते हैं। अर्थात्‌ हम हैरान हैं कि आप गोल मटोल हैं फिर भी हमें तिरछे दिखते हैं। वह इस बात से हैरान-परेशान है कि चाँद तिरछा क्यों नजर आता है। आखिर में वह इस नतीजे पर आती है कि चाँद को बीमारी है। वह चाँद से कहती है आप हमें बुद्धू समझते हो। आप को लगता है कि हम यह नहीं समझते कि आप क्यों घटते-बढ़ते रहते हो। आपको अवश्य कोई बीमारी है। आप घटते हैं तो घटते चले जाते हैं और यदि बढ़ते हैं तो बढ़ते चले जाते हैं। वह कहती है आपका घटना और बढ़ना निरन्तर गति से चलता रहता है। आप तब तक साँस नहीं लेते जब तक पूरे गोल न हो जाओ। उसके अनुसार चाँद की यह बीमारी ठीक नहीं हो रही है वरना वह गोल-मटोल ही रहते। भाव यह है कि उसका कोमल अर्न्तमन चाँद के घटने-बढ़ने को चाँद की बीमारी मानता है जो उन्हें बढ़ाता ही चला जाता है या फिर घटाता ही चला जाता है। शायद चाँद की ये बीमारी ठीक नहीं होती वरना वह गोल-मटोल ही रहते।
ढेरों शुभकामनाएँ!

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