bharat ki mukya samasya gaav ka vikaas

शहरों में शिक्षा, मनोरंजन एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं की मौजूदगी भी लोगों के पलायन का कारण रही है। व्यक्ति कितना भी गाँव में रहने का इच्छुक हो पर ऊँची शिक्षा व गंभीर बीमारी की स्थिति में गाँवों को छोड़कर उसे शहर जाना पड़ता है। आज़ादी के 62 साल पूरे होने के बावजूद भी गाँव में छूआछूत, जातिवाद, तिरस्कार, गरीबी तथा सामंती तकलीफों से तंग आकर उन्हें शहरों में शरण लेना पड़ता है, बच्चों को उचित शिक्षा न मिल पाना, निर्धनता व बेरोजगारी ने उनके जीवन को नरक बना दिया है।
 
एक देश शहर व गाँवों से मिलकर बनता है। सरकार को चाहिए ऐसी कारगार योजनाएँ बनाई जाएँ जिससे शहरों को इस लायक बनाया जा सके कि वह आबादी के बोझ व उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं से सरलतापूर्वक निपट सके। दूसरी ओर गाँवों का इस तरह विकास किया जाए कि वहाँ से आबादी स्थानांतरण को पहले रोका जाए नहीं तो उसकी रफ्तार धीमी की जा सके। हमारे गाँव के सही विकास से वह शहरों से भी अधिक उत्तम व उन्नतिशील बन सकते हैं। लेकिन समस्या यह है कि इनकी तरफ ध्यान देता कौन है। नेताओं को बस शहरों का विकास करना है। गाँवों के बारे में तो जैसे उन्हें कुछ याद ही नहीं रहता है। हमें चाहिए एक जुट होकर इस समस्याओं से छुटारा पाएँ।
 सरकार द्वारा गाँव में ही उच्च-शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ, लघु-उद्योग धंधों को बढ़ावा और प्राकृतिक आपदा आने पर बैंकों द्वारा लोन के रूप में सहायता के अच्छे इंतजाम होने चाहिए। इससे हम शहरों व गाँवों को समान रूप से अच्छा विकास दे समस्याओं से मुक्त कर पाएँगे।

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