bhartiya senayome ladkiyonki kya sthithi hai
आज समय तेज़ी से बदल रहा है। समय के साथ-साथ मनुष्यों की सोच में भी बदलाव आया है। भारतीय समाज में सबसे खराब स्थिति स्त्रियों की थीं। परन्तु आज उनकी स्थिति सबसे सशक्त है। आज की नारी दब्बू, अबला और असहाय नहीं है। अब उसका दायरा घर-परिवार एवम् चूल्हा-चक्की भी नहीं है। वे आज सशक्त व्यक्तित्व की स्वामिनी है। वे सोने के आभूषणों से लदी हुई वस्तु नहीं है बल्कि स्वाभिमानी, दृढ़ निश्चयी, सबला आदि आभूषणों से युक्त है। हर परिस्थिति का सामना करने की उनके अंदर शक्ति और सामर्थ्य है।
एक समय था, जब भारत में स्त्री का स्थान बहुत निम्न था। ग्रंथों में उसे देवी का स्थान दे दिया गया था परन्तु यथार्थ में उसे स्त्री कहकर घर की चार-दीवारियों के बीच कैद कर लिया गया। शिक्षा के अधिकार से उसे वंचित रखा गया। उसका जीवन घर-परिवार तक ही सीमित था। पति की कृपा पर जीवित एक प्राणी मात्र थी। उसका स्वयं का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। बदलते समय में जैसे-जैसे स्त्री ने शिक्षा लेना आरंभ किया, उसके जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव आना आरंभ हुआ। उसने स्वयं के लिए एक नए जीवन की कल्पना की और धीरे-धीरे एक समय ऐसा आया, जब उसने स्वयं को कल्पना से बाहर निकलकर अपने सपनों को साकार भी कर दिया।
आज की स्त्री किसी भी तुलना में पुरुषों से कम नहीं है। महत्वकांशा, व्यवहार, व्यवसाय और कर्तव्यों में वे पुरुषों को मुकाबला दे रही है। आभूषणों से लदी, विनम्र, लम्बे बालों से युक्त स्त्री अब सौन्दर्य का प्रतीक नहीं मानी जाती है। अब वह भी पुरुषों के समान जींस, पैन्ट, कमीज़ पहनकर पुरुषों को मात दे रही है। उसका स्वाभिमान से भरा व्यक्तित्व उसके सौन्दर्य का प्रतीक माना जा रहा है। स्त्रियाँ उन सब कठिन कार्यों को कर रही हैं, जो केवल पुरुषों के अधिकार क्षेत्र माने जाते थे। वाहन चलाना, हवाई ज़हाज उड़ाना, सेना में भविष्य बनाना इत्यादि।
जहाँ नारी शिक्षित होती है, वहाँ राष्ट्र का निर्माण स्वयं ही हो जाती है। शिक्षित नारी अपने बच्चों को सही दिशा दे पाती है। बच्चे देश का भविष्य होते हैं। जहाँ बच्चे का आधार ठोस हो, वहां कभी अज्ञानता और अविकास नहीं दिखता।