bhor barkha poem ka meaningg kya hoga

भोर का अर्थ है सुबह/प्रात:काल का समय व बरखा का अर्थ हैं वर्षा। यह दो अलग-अलग पद है लेकिन इन्हें एक साथ दिए जाने के कारण इनका नाम आपस में जोड़कर रखा गया 'भोर और बरखा'।
 
प्रथम पद में भोर के समय यशोदा माँ के द्वारा श्री कृष्ण को जगाने का प्रयास किया जा रहा है। वह उन्हें विभिन्न प्रकार से जगाते हुए कहती है की मेरे प्यारे ललना! सभी के घरों के दरवाजे खुल गए हैं, गोपियों के कगंन की आवाज के झनकारे सुबह होने का संकेत देते हैं, देवता और मनुष्य सभी तुम्हारे द्वार पर आकर खड़े हो गए हैं। तुमहारे सभी गवाले मित्र तुम्हारा नाम लेकर तुम्हें बुला रहे हैं। इसीलिए तुम्हें उठ जाना चाहिए।
 
द्वितीय पद में मीरा कहती है की सावन का महीना आ गया है। इस ऋतु में आकाश में काले बादल छा जाएँगे व वर्षा होने लगेगी। इस ऋतु में मेरा मन प्रसन्नता से भर गया हैं क्योंकि मुझे अपने कृष्ण के आने का समाचार प्राप्त हुआ है। चारों दिशाओं में बादल उमड़-घुमड़ कर छाने लगे हैं, बिजली चमकने लगी है और वर्षा आरंभ हो गई है। मंद व शीतल हवा बहने लगी हैं। मीरा कहती वर्षा में मेरा मन आंनदित हो रहा है।
इन पदों को पढ़ने के पश्चात आपको ज्ञात हो गया होगा की इस कविता का क्या अर्थ है।

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