Bijli Ki Atmakatha par anuched

प्रिय  विद्यार्थी,


बिजली की आत्मकथा 

मैं हूँ बिजली ! मैं ही विद्युत् कहलाती हूँ। मैं इस प्रकृति के साथ-साथ आधुनिक संस्कृति में भी विभिन्न रूपों में निवास करती हूँ। मैं एक अदृश्य शक्ति हूँ। हर पदार्थ के कण-कण से शक्ति पिरोकर मैं गतिमान हो जाती हूँ। मैं विद्युदणु (इलेक्ट्रॉन) के चलायमान होने से ही अपना असली रूप लेती हूँ। 

मैं ही इंद्र के हाथों में वज्र बनकर विराजती हूँ। प्रकृति में खूब गर्जन करके जब मैं प्रसन्न होती हूँ, तो वर्षा का सन्देश समस्त भूमि को पहुँचाती हूँ। मेरे गरजने से जीव डरते भी हैं परन्तु वर्षा के स्वागत में हर्षित भी होते हैं। परन्तु यह मेरा रौद्र रूप है, इससे सृष्टि को क्षति पहुँचती है।  

प्रकृति में तो मेरा महत्त्व सीमित ही था परन्तु आज के आधुनिक युग का मैं अभिन्न अंग बन चुकी हूँ। जब मानव ने मुझे जिज्ञासु बनकर जाना, तब उसने मुझे नया रूप दिया। मानो मेरा पुनर्जन्म हुआ हो।  आज मेरे ही कारण हर घर  में सूरज ढलने के बाद भी अन्धकार नहीं होता। मेरा उत्पादन कई तरीकों से होने लगा है। मुझे लोग चमत्कार से कम नहीं समझते। मेरे द्वारा अब मानव जीवन में अनेक उपयुक्तताएँ आ गयी हैं। मुझसे अब खेती, रोशनी, कल-कारखाने, वाहन तथा सम्पूर्ण चिकित्सा व व्यापार चलता है। मेरे बिना मानव जीवन असंभव है। 

जब जब मानव को दूसरों की सेवा के लिए संसाधन चाहिए होंगे तब तब मैं उसकी सहायक रहूंगी। 




आभार। 

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