can i get the summarised description of each para of poem manushyata....if not possible then at least of last 2 paras..... 

Hi!
हम आपको पूरी कविता नहीं समझा सकते हैं, इसके लिए हमें खेद है। परन्तु आपकी सहायता के लिए हमने कविता के अन्तिम दो पद्याशों का भाव विस्तारपूर्वक दिया है। यह आपकी मदद अवश्य करेंगे।
गुप्त जी कहते हैं कि हम सारे मनुष्य के बीच मित्रता का संबंध है जो कि महत्त्वपूर्ण बात है। हम सब एक ही ईश्वर की सन्तान हैं। यह कहा जाता है कि मनुष्य जैसे कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। यह बात वेद-पुराणों में कही गई है। जो इस बात का प्रमाण देती है। हमारा हृदय भी इस सत्य को भली-भांति जानता है परन्तु फिर भी कितने दुख की बात है कि हम किसी को दुखी देखते हुए भी कुछ नहीं करते हैं। भाव यह है कि भगवान ने हम सबको बनाया है। हम सब मनुष्य होने के नाते एक अटूट रिश्ते में बन्धे हुए हैं परन्तु विडंबना यह है कि हम फिर भी एक-दूसरे के दुखों व कष्टों को अनदेखा करते रहते हैं। ईश्वर ने कर्मों के आधार पर हमारी नियति लिखी है। हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे। अतः इस सत्य को जानते हुए हमें सब के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए, तभी हम सच्चे मनुष्य कहलाएँगे।
यह मार्ग थोड़ा मुश्किल जरूर है परन्तु हमें उस मार्ग पर दृढ़ निश्चय से हँसते हुए बढ़ना चाहिए। परमार्थ के मार्ग पर चलते हुए कितनी भी विपत्ति व विन आए उसका निडरता से सामना करते हुए बढ़ना चाहिए। इस मार्ग पर चलते हुए हमें स्वयं को न ही गिराना है और न ही कभी अपने अन्दर हीनता का भाव लाना है। हमें मानवता की सेवा के मार्ग पर हँसते हुए निश्चित भाव से बढ़ना है। हमें चाहिए कि स्वयं इस मार्ग पर बढ़े और अन्य लोगों को भी इस मार्ग पर बढ़ाएँ ताकि सबका भला हो सके। हम तभी दूसरों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं जब हम मानवता की सेवा के कार्य को समस्त संसार में फैलाएँगें।
आशा करती हूँ कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!
 

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