can u plz tell me a brief bhavarth of poem 'Dev' of class 'x'. kindly help me 

नमस्कार मित्र!
 
आपको देव जी द्वारा रचित तीनों पदों की व्याख्या दी जा रही है। आशा करती हूँ कि ये आपकी सहायता अवश्य करेगी।
1. कवि कहते हैं श्रीकृष्ण ने पैरों में बड़ी सुन्दर पायल पहनी हुई है जो बज रही है। उन्होंने कमर में बहुत सुन्दर तगड़ी पहनी हुई है। उसकी धुन बहुत ही मधुर है। श्रीकृष्ण ने साँवले शरीर पर पीताम्बर (पीले रंग का) वस्त्र धारण किए हुए हैं। उन्होंने गले में तुलसी की माला धारण की हुई है। सर पर मुकुट और दृर्ग के समान दो विशाल आँखें हैं। चन्द्रमा के समान चेहरे पर चाँदनी रूपी सुन्दर हँसी शोभा दे रही है। वह आगे कहते हैं ऐसे प्रतीत होता है मानों संसार रूपी मन्दिर को दीपक के समान श्रीकृष्ण प्रकाशमान कर रहे हैं। श्रीकृष्ण दूल्हे के समान लग रहे हैं।
2. कवि कहते हैं कि प्रकृति ने वसंत रूपी बच्चे के आगमन पर उसके लिए डाल रूपी पालना तैयार किया है व उस पर नए पत्तों का बिछौना बिछया है। भाव यह है कि वसंत ऋतु के आने पर वृक्षों की डाले नए पत्तों से भर जाती हैं। उन्होंने बालक को फूलों का झबला पहनाया हुआ है जिससे वह बहुत सुन्दर लग रहा है। अर्थात्‌ वसंत आने पर सारी डाले फूलों से लद गई हैं। बच्चे के पालने को पवन द्वारा झूला-झुलाया जा रहा है। मोर और तोते बच्चे से बातें कर रहे हैं। कोयल अपने मधुर स्वर से इस बच्चे को खुश करती व हिलाती है। बसंत रूपी बालक की नज़र पराग रूपी राई नोन से कमल की कली रूपी नायिका सिर पर लताओं रूपी साड़ी ओढ़कर उतार रही है। बसंत रूपी बालक को उठाने के लिए मानों प्रातः काल में गुलाब की कली चुटकी बजाकर उठाती है। अर्थात्‌ प्रातः काल में गुलाब की कली चटकर खिल उठती है। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों गुलाब बच्चे को चुटकी बजाकर उठा रहा है।
3. कवि देव जी कहते है कि चाँदनी रात में आकाश सुधा मन्दिर के समान लग रहा है। यह मन्दिर स्फटिक शिला से बना हुआ है। इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों दही का समुद्र उमड़ कर आया है। इस मन्दिर में बाहर से भीतर तक कोई दीवार कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है। भाव यह कि चाँदनी रात में चाँदनी से नहाया हुआ आकाश सफेद संगमरमर से बना मन्दिर प्रतीत होता है। ऐसा लगता है मानों उसके तल में दही के समान सफेद समुद्र की लहरें लहरा रही हों। यह ऐसे मन्दिर के समान लगता है जिसमें कोई दीवार नहीं है। इस मन्दिर के आँगन में फ़र्श ऐसा लगता है मानो दूध का फेन फैल गया हो। अर्थात्‌ चाँदनी दूध के झाग के समान बिखरी हुई प्रतीत होती है। इस मंदिर में तारे के समान नायिका खड़ी झिलमिला रही है। मल्लिका नमक फूल का मकरंद मोतियों की आभा के समान प्रदर्शित कर रहा है। इसे देखकर ऐसा लगता है मानों नायिका ने अपने गले में मोतियों की माला पहन रखी है। देव जी कहते हैं कि रात में चाँदनी का उजलापन आभा के समान चमकता है। आसमान दर्पण के समान स्वच्छ व निर्मल है। ऐसा प्रतीत होता है मानों इस साफ दर्पण में चन्द्रमा रूपी प्यारी राधा का प्रतिबिंब पड़ रहा हो।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

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 the 1st stanza is abut srikrishna and 2nd stanza ia about vasnt kritu, the 3rd one is about night sky and radha..

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thanks for uu

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thank you very much mam for your kind reply and help!

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