can you give the meaning of the last paragraph of manusheyta poem,I can't understand what is given by the website? 

मित्र इसकी व्याख्या है कि परोपकार के मार्ग में प्रसन्नतापूर्वक चलना चाहिए।
किसी भी तरह की कठिनाई या संघर्ष आए, तो उनसे डरना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें दूर हटाते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
इस मार्ग में आपसी भाईचारे को बढ़ाते जाना है, उसमें कमी नहीं लानी है और धर्म, जाति इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं करना है।
इस मार्ग में बिना किसी बहस के सर्तकतापूर्वक आगे बढ़ना है।
उसी को समर्थ कहा जाएगा, जो दूसरों के उद्धार के साथ अपना भी उद्धार करे।
वही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है, जो दूसरे मनुष्य के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे सके।

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