chaya mat chuna me se ras chatkar likiye
कवि कहते हैं कि हे मनुष्य तुम छाया मत छूना अर्थात् बीते समय में तुम्हें जितना भी सुख मिला हो, उसे वर्तमान में याद करके दुखी मत होना। यही मनु ष्य के दुख का कारण होता है। हमारे जीवन में अनेक रंग -बिरंगी यादों की सुहावनी बेला आती है। उन सुनहरी यादों की मधुर खुशबू अभी तक चारों तरफ फैली हुई है परन्तु समय बीत गया है। अब प्रिय की सुगंध ही मात्र शेष रह गई है। अब वह चाँदी रात समाप्त हो गई है। प्रिय के केशों की महक से युक्त वह चाँदनी रात अब नहीं रही है। प्रिय के साथ बिताए वह सुन्दर क्षण अब मात्र यादों में ही रह गए हैं। इस वर्तमान समय में मेरे पास न यश है, न वैभव है और न ही मान-सम्मान है। इन्हें प्राप्त करने के लिए मन जितना इनके पीछे भाग रहा है, उतना ही भ्रमित हो रहा है। किसी समय मेरे पास यह था अब नहीं है। यह सब बातें मन को दुखी कर रही हैं। हमेशा शीर्ष पर रहने की इच्छा ने मेरी वैसी ही हालात कर दी है जैसे रेगि स्तान में पानी के पीछे भटकते हिरण की होती है। हम यह सत्य भूल जाते हैं कि हर चाँदनी रात के बाद फिर काली रात माथुर जी कहते हैं कि मनुष्य के अन्दर अपार साहस होता है। परन्तु स्थिति वहाँ खराब हो जाती है जब वह दुविधा ग्रस्त होता है। उस समय उसे कोई मार्ग नहीं दिखाई देता है। जो व्यक्ति भ्रम में रहता है साहस होते हुए भी उसे चारों तरफ शून्य ही नजर आता है। मनु ष्य शरीर से कितना स्व स्थ्य नजर आए परन्तु यदि उसका हृदय दुखी है तो वह बीमार ही कहला एगा। कवि कहते हैं कि क्या हुआ यदि शरद की रातों में चाँद नहीं निकलता, क्या हुआ खुशी तब आई जब वसंत की ऋतु चली गई? हमें अपने वर्तमान में जो मिलता है उसे खुली बांहों से स्वी कार कर बीते सुख को भुला कर वर्त मान में जीना चाहिए। तभी वह जी सकता है। अतः कवि यह सलाह देते हैं कि बीते सुख के समय को याद न करके वर्त मान में जीओ अन्य था सिवाए दुख के कुछ नहीं मिलेगा।
आशा करती हूँ कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।