Could I please have the summary for Manushyata
Hi!
प्रस्तुत कविता में कवि मनुष्य को मनुष्यता का भाव अपनाने के लिए कहता है। उसके अनुसार आज का मनुष्य अपने स्वार्थां की पूर्ति हेतु लोकहित जैसी भावना को भूलता जा रहा है। उसके अनुसार जो मनुष्य अपने लिए जीता है, वह पृथ्वी में पशु के समान है क्योंकि पशु के जीवन का उद्देश्य खाना व सोना है। भगवान ने मनुष्य को सामर्थ्यवान बनाया है यदि वह अपना जीवन दूसरों की सेवा व हितों में नहीं बल्कि स्वयं के लिए जीता है ऐसा मनुष्य, मनुष्य कहलाने लायक नहीं है। वह बहुत महानुभूतियों का उदाहरण देकर मनुष्य को लोकहित के लिए प्रेरित करते हैं। वह कहते हैं जो मनुष्य इस संसार में दूसरों की सेवाभाव में अपना जीवन समर्पित करते हैं, वह इस संसार में ही नहीं अपितु भगवान के द्वारा भी पूज्यनीय होते हैं। वह अपने कार्यों से समाज में अन्य लोगों को लोकहित व सेवा का मार्ग दिखाते हुए चलते हैं।
मैं आशा करती हूँ कि आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
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