deh sukhi hone par bhi kabhi kabhi man ke sukh ka ant kyon nhi hota

मन की कोई सीमा नहीं है। वह आकाश की तरह अनन्त है। अतः देह को हर प्रकार के सुख साधन उपलब्ध करवा दिए जाएँ, उसे मान लिया जाए कि वह सुखी हो गई है। लेकिन मन को वह सुख कम ही लगता है। वह हमेशा किसी न किसी तलाश में भटकता रहता है। अतः उसे सुखी करना कठिन है।

  • 0
What are you looking for?