dhool par dohe

रहिमन ठहरी धूरि की, रही पवन ते पूरि 
गाँठ युक्ति की खुलि गयी, अंत धूरि को धूरि
 
संत रहीम कहते हैं ठहरी हुई धूल हवा चलने से स्थिर नहीं रहती, जैसे व्यक्ति की नीति का रहस्य यदि खुल जाये तो अंतत: सिर पर धूल ही पड़ती हँ।
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रहिमन ठहरी धूरि की, रही पवन ते पूरि 
गाँठ युक्ति की खुलि गयी, अंत धूरि को धूरि
 
संत रहीम कहते हैं ठहरी हुई धूल हवा चलने से स्थिर नहीं रहती, जैसे व्यक्ति की नीति का रहस्य यदि खुल जाये तो अंतत: सिर पर धूल ही पड़ती हँ।
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रहिमन ठहरी धूरि की, रही पवन ते पूरि 
गाँठ युक्ति की खुलि गयी, अंत धूरि को धूरि
 
संत रहीम कहते हैं ठहरी हुई धूल हवा चलने से स्थिर नहीं रहती, जैसे व्यक्ति की नीति का रहस्य यदि खुल जाये तो अंतत: सिर पर धूल ही पड़ती हँ।
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माथे सदा लगाइये, जन्मभूमि की धूल।
तन-मन के भीतर खिले, देशभक्ति का फूल।। 1।।

जीवन की है आस्था मिट्टी, पानी, धूल।
इन्हें त्यागने की कभी करना मत तुम भूल।। 2 ।।

अंतर मिट्टी-धूल में करना सहज समान
जैसे मानव की बने रंग, रूप, पहचान।। 3 ।।

धूलि गांव की स्वर्ण-सी, सदा लगाओ माथ।
 मां के आशीर्वाद-सी, देती हरदम साथ  ।। 4 ।।

श्रद्धा, भक्ति, सनेह की देती है जो सीख।
मूल्यवान है धूल ये कहीं न मिलती भीख ।। 5 ।।

धूल सरीखी जि़न्दगी, जिसे संवारे धूल । 
माथे इसे लगाइये, यह जीवन की मूल ।। 6 ।।

 मिट्टी काली, लाल है, लेकिन धूल सफेद ।
श्रम तब तक यूं कीजिए, देह गिरे जब स्वेद।। 7।।

पंचतत्व में एक है, मिट्टी प्राण समान।
यही कराती है हमें, देशभक्ति का ज्ञान।। 8 ।।

धूल हमें देती सदा, देश प्रेम की चाह।
बैर न करना धूल से, तभी मिलेगी राह।। 9 ।।

 "वर्षा" ने हरदम किया, महिमा धूलि बखान।
धूल सदा निज देश की, लगती हमें महान।। 10।।
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